Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३६४ होती है। ऐसी ध्यानकी दशा तो पूर्णता तक होती है।

फिर मुनिको ध्यान बहुत उग्र हो जाय तो उसमेंसे श्रेणि लगाकर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। ऐसी ध्यानकी दशा मुनिओंको प्रगट होती है। गृहस्थाश्रममें ध्यान होता है, परन्तु ज्ञायकको ग्रहण करके (होता है)। (ज्ञायकको) ग्रहण करके मैं ज्ञायक हूँ, ऐसी ज्ञायककी परिणति दृढ करके, उसका आश्रय लेकर उसका ध्यान करे तो उसमें निर्विकल्प स्वानुभूति (होती है)। स्वयं अपने स्वरूपमें लीन हो, वह हो सकता है। परन्तु गुरुदेवने जो कहा है, वह आशय ग्रहण करके, वह मार्ग ग्रहण करके जो करे तो यथार्थ होता है। नहीं तो बाहरसे शुभभावरूपसे जीवने अनेक बार किया है। परन्तु वह शुभभावरूप होता है, पुण्यबन्ध होता है, लेकिन भवका अभाव नहीं हो सकता। इसलिये गुरुका आशय, आशय ग्रहण करके करे तो यथार्थ होता है।

मुमुक्षुः- हे पूज्य माताजी! आजका दिन महामंगल है। क्योंकि आजके दिन आपने शुद्धात्मस्वरूप भगवान आत्माके साक्षात दर्शन किये, आप विकल्पातीत हुए, पवित्र सम्यग्दर्शन प्रगट किया, तो हमारी विनती है कि विकल्पातीत होनेका उपाय क्या है? यह बताकर आप हमें आशिर्वाद दीजिये।

समाधानः- गुरुदेवने मार्ग स्पष्ट किया है। गुरुदेवका परम-परम उपकार है। गुरुदेवने ही पूरा मार्ग बताया है। स्वयं विचार करे तो समझमें आये ऐसा है। गुरुदेवने इतना स्पष्ट किया है। गुरुदेवने ज्ञायककी पहचान करवायी। सब गुरुदेवका परम-परम उपकार (है)। इस दास पर भी गुरुदेवका परम उपकार है।

गुरुदेवने कहा है और शास्त्रमें भी आता है कि पहले श्रुतज्ञानसे ज्ञानस्वभाव आत्माका निर्णय, यह ज्ञायक है वही मैं हूँ, उसका निश्चय ऐसा दृढ करे कि इन सबसे भिन्न मैं ज्ञायक हूँ। यह शरीर भी मैं नहीं हूँ, यह विभाव मेरा स्वभाव नहीं है, उससे भिन्न ऐसा ज्ञानस्वभाव (है)। ज्ञानमें अर्थात पूर्ण ज्ञायक ऐसा निर्णय करके, ऐसा निश्चय करे कि वह ऐसा निःशंक हो जाय कि कोई चाहे कुछ भी कहे अथवा चौदह ब्रह्माण्ड फिर जाय, तो भी उसकी दृढता फिरे नहीं। ऐसा निःशंक हो जाय। ऐसा ज्ञातामें श्रद्धाका बल लाये। उस बलसे ज्ञायककी दृढता करके, ज्ञायकमें उग्रता करे, विभावसे विरक्ति हो, चैतन्यकी-ज्ञायककी महिमा आये, परसे, विभावसे सबसे महिमा छूट जाय। एक ज्ञायककी महिमा, ज्ञायककी रात और दिन लगनी, जिसे ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायकदेवके सिवा कहीं चैन नहीं पडती।

भेदज्ञानकी धारा उग्र हो, क्षण-क्षणमें, क्षण-क्षणमें ज्ञायककी उग्रता हो। ज्ञायककी उग्रता, ज्ञायकमें एकाग्रता, ज्ञायककी धून और ज्ञायकमें बारंबार ज्ञायक.. ज्ञायक.. करे। जो मति-श्रुतका उपयोग बाहर जाता है, बाहर जो विचार और श्रुतके विचार आते