३६६ ऐसा कोई अपूर्व चैतन्यदेव प्रगट होगा कि जो अनुपम है। वही उसका उपाय है। भगवान कैसे मिले? चैतन्यदेव कैसे प्राप्त हो? "कंचन वरणो नाह मुने कोई मिलावो' कहीं अच्छा नहीं लगता। "अंजन रेख न आँख न भावे' कहीं अच्छा नहीं लगता है, किसीके साथ बोलना अच्छा नहीं लगता, खाना अच्छा नहीं लगता, किसीके प्रति राग करना रुचता नहीं, कहीं फिरना अच्छा नहीं लगता, कहीं चैन नहीं पडती है। एक आत्मा, एक आत्मदेव मुझे कोई मिलावो। हे गुरुदेव! मुझे वह मिलावो। वह तो कोई अलग ही था। अन्दर ऐसी भावना, लगनी लगे तो ऐसी भावना होती है। अन्दर वेदनके कारण ऐसा सब गानेमें आता था।
समाधानः- द्रव्य उसकी नाम है कि दूसरे भावकी राह नहीं देखनी पडे। दूसरेकी राह देखनी पडे तो द्रव्य कैसा? द्रव्य ऐसा स्वतंत्र स्वतः स्वरूप होता है कि जिसके कार्यके लिये दूसरे साधनोंकी राह देखनी पडे तो वह द्रव्य स्वयं कमजोर हुआ। वह स्वयं स्वतंत्र अनन्त शक्तिवाला द्रव्य (है)। द्रव्य उसे कहते हैं कि जो स्वतःसिद्ध हो। उसे किसीने बनाया नहीं है। अनन्त शक्ति संपन्न जो चैतन्य द्रव्य है, उसे कार्यकी, जो अपनी परिणति प्रगट करनी है, उसके लिये साधन आये तब यह कार्य हो, साधन नहीं है तो कार्य कैसे हो? ऐसे राह देखनी पडे तो द्रव्य ही नहीं कहलाता। ऐसी राह नहीं देखनी पडती।
उसके कार्यकी तैयारी हो तो उसे साधन स्वतः आ जाते हैं। उसे साधनोंकी राह देखनी पडे, साधन नहीं है, अब कैसा आगे जाऊँ? साधनोंकी राह देखनी नहीं पडती। स्वयं परिणति करनेवाला जो द्रव्य है, स्वयं ही उसकी कार्यकी परिणति होती है। अनादिअनन्त स्वतःसिद्ध शुद्धात्मा स्वयं (है)। उसमें दर्शन, ज्ञान, चारित्रकी जो साधना होती है, उसकी कार्यकी परिणति करनेवाला वह स्वयं है। स्वयं स्वतःसिद्ध कार्यकी परिणति करता है। साधनके बिना मैं कैसे आगे जाऊँ? उसे द्रव्य ही नहीं कहते। ऐसा द्रव्य वह द्रव्य नहीं है। ऐसा पराधीन द्रव्य (नहीं है)।
द्रव्य उसे कहें कि उसके कार्यके लिये दूसरेकी राह देखनी पडे, वह द्रव्य ही नहीं कहलाता। ऐसा द्रव्य हो नहीं सकता। कुदरती स्वयं द्रव्य स्वतःसिद्ध है। उसे दूसरे साधन हो तो वह द्रव्य खडा रहे, ऐसा नहीं होता। अनादिसे स्वयं अपनेसे ही शाश्वत टिका है और उसकी कार्यकी परिणतिमें स्वयं अनादिसे स्वतंत्र (है), प्रत्येक कार्यमें स्वतंत्र है। उसे साधनोंकी राह देखनी पडे तो उसे द्रव्य ही नहीं कहते।
अन्दरसे सम्यग्दर्शन प्रगट हो, द्रव्यका आश्रय ले, उस रूप ज्ञानकी परिणति हो, अन्दर लीनता बढे, वह सब स्वयं परिणमन करनेवाला है। अपनी परिणतिकी गति, पुरुषार्थकी गति वह स्वयं करता है। उसमें उसकी परिणति हो, ऐसी परिणति हो और साधन