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आये नहीं, ऐसे उसकी राह नहीं देखनी पडती। वह द्रव्य ही नहीं कहलाता। ऐसा पराधीन द्रव्य हो सकता नहीं। वह द्रव्य ही नहीं कहलाता। कुदरतमें ऐसा द्रव्य होता ही नहीं। पराधीन द्रव्य (नहीं होता)। उसकी कार्यकी परिणति हो तो अपनेआप साधन आ जाते हैं, उसे राह नहीं देखनी पडती। स्वयं अपनेमें परिणति करनेवाला है।
.. पूरा चक्र अपनेसे ही चल रहा है। कर्मके कारण होता नहीं अथवा साधन नहीं मिले हैं, ऐसा नहीं है। स्वयंकी कचासके कारण स्वयं अटका है। स्वयं पुरुषार्थ करे तो स्वयं आगे बढता है। उसके कार्यके लिये किसी भी साधनकी जरूरत पडती नहीं। साधनके लिये रुकना पडे तो वह द्रव्य ही नहीं है। और ऐसा पराधीन द्रव्य हो ही नहीं सकता।
मुमुक्षुः- द्रव्य कमजोर हो गया।
समाधानः- द्रव्य कमजोर हो गया। ऐसा कमजोर द्रव्य होता ही नहीं। ऐसा दूसरेके आधारसे टिकनेवाला द्रव्य, ऐसा द्रव्य शाश्वत रह नहीं सकता, उस द्रव्यका नाश होता है। (अनन्त गुणोंसे) भरपूर द्रव्य स्वयं जब भी परिणति करनी हो तब कर सकता है। अपने स्वभावकी ओर जानेकी तैयारी हो, तो आपोआप सब निमित्त उसे प्राप्त हो जाते हैं।
मुमुक्षुः- .. कमजोर पड जाय, .. समाधानः- द्रव्य कमजोर पड गया। ऐसा कमजोर द्रव्य होता ही नहीं। एक साधनके लिये कमजोर पड गया। साधनके लिये कमजोर होता हो तो कमजोर ही रहेगा। वह कहाँ शक्तिवान हुआ? ऐसा द्रव्य ही नहीं होता, उसे द्रव्य ही नहीं कहते। ऐसा हो सकता नहीं।