पडे उसके जोरमें और विभावसे भिन्न पडे उसके जोरमें, उस जोरमें उसे ख्याल होता है, उस जोरमें उसे फर्क पडता है। पहलेवाला जोर तो अत्यंत भिन्न हूँ, ऐसा जोर आता है। और निर्मल पर्यायमें अत्यंत भिन्न हूँ, ऐसा नहीं आता है। परन्तु अपेक्षासे अंश है और मैं यह त्रिकाली हूँ। ऐसे होता है। उसमें हित-अहित जो भी हो... परन्तु आश्रय चैतन्यका है। यह आश्रय लेने योग्य नहीं है। आश्रय हितका कारण नहीं है।
मुमुक्षुः- माताजी! इतनी भिन्नता पहले जब तक नहीं आती है, तब तक ऐसा लगता है कि कुछ न कुछ पर्यायकी अपेक्षा रह जाती है।
समाधानः- ख्यालमें सब है। ख्यालमें होता है इसलिये उसके जोरमें अमुक है। परन्तु द्रव्य पर दृष्टिमें जोर (रहता है कि), यह मैं, यह चैतन्यद्रव्य वही मैं हूँ, उसमें सब पर्यायें स्वयं समा जाती है। दृष्टिका जोर एक द्रव्य पर ही रहता है। पर्याय पर अनादिका है इसलिये पर्यायकी भांजगड करता रहता है। यह परिणाम, यह परिणाम... ऐसे।
गुरुदेव ऐसा ही कहते थे कि द्रव्य पर दृष्टि करे। इसलिये उसका बल धारावाही रहे। परिणामकी भांजगडमें खडा नहीं रहे। मैं एक ज्ञायक ही हूँ। फिर उसे ऐसा आये कि यह मेरा स्वरूप नहीं है। यह मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे होता है। ऐसा साथ-साथ होता है। द्रव्यके जोरके साथ-साथ ज्ञान काम करता रहता है।
मुमुक्षुः- आपकी कृपासे मैं हृदयसे कहता हूँ, श्रद्धाके साथ ज्ञान साथ-साथ रहता है, यह जो आपने बिठाया है, वह तो ऐसा बैठ गया है कि श्रद्धाकी जो भी बात चलती हो, फिर भी ज्ञानका विषय और ज्ञानका कार्य, दोनों ..
समाधानः- .. एक द्रव्य पर दृष्टि करे तो सब गुत्थी सुलझ जाती है। मैं यह एक शाश्वत द्रव्य हूँ। उसका जोर आवे तो वह सब गुत्थी गौण हो जाती है। एकको लक्ष्यमें लेनेसे सब भ्रमजाल छूट जाती है।
.. उसमें कोई नुकसानका कारण नहीं है। दृष्टि अनादिसे नहीं की है। द्रव्यदृष्टिके बल बिना आगे नहीं बढ सकता। इसलिये गुरुदेव एकदम द्रव्यदृष्टिके जोरसे, उसकी पूरी दृष्टि पलट जाय ऐसे जोरसे उपदेशमें कहते थे और वस्तु स्वरूप द्रव्यदृष्टिके जोरमें ही आगे बढता है। इसलिये द्रव्यदृष्टिके जोरके साथ ज्ञानमें यह ख्याल होना चाहिये। कितनोंको एकान्त हो जाता है, इसलिये नुकसानका कारण होता है। द्रव्यदृष्टि जोर तो मुख्य है, परन्तु उसके साथ यह होना चाहिये। वह तो मुख्य है, द्रव्यदृष्टिका जोर।
.. सब मुंबईका था। ऊपरमें। सब दरवाजे पर ऊपरके भागमें उस प्रकारसे सजावट की थी। पहले हुआ नहीं था, सब पहली बार था इसलिये...
मुमुक्षुः- ..