Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३७०

समाधानः- हाँ। उदघाटन किया था।

मुमुक्षुः- उन्होंने तीन हजार दिये थे। स्वाध्याय मन्दिरके कम्पाउन्डमें। तीन हजार तो उन्होंने लिखाया था। तीन हजार तो उन दिनोंमें तीन लाखसे भी ज्यादा लगते थे। इसलिये उनके हाथोंसे उदघाटन करवाया था। ..

समाधानः- पूर्व दिशामें। पूर्व दिशाका जो दरवाजा था न...

मुमुक्षुः-

समाधानः- शीतलप्रसादजी।

मुमुक्षुः- हीराभाईके बंगलेसे गुरुदेव पधारे तो घूमघामसे पधारे थे।

समाधानः- हाँ, धूमधामसे पधारे थे।

मुमुक्षुः- लाठीना उतारेसे वहाँसे चांदीके थालमें पुस्तक लेकर (आये थे)।

मुमुक्षुः- हमें तो कुछ मालूम ही नहीं है।

समाधानः- उस वक्तका तो याद ही होता है न। पहली बार था। सब पहलेसे स्वाध्याय मन्दिरमें जाकर गीत गाते थे। सब भक्ति करते थे। थोडी बहनें (जाती थी)।

मुमुक्षुः- उस वक्त तो आपकी उम्र भी छोटी थी।

समाधानः- २४ वर्ष। हिंमतभाई और दूसरे सब वहाँसे "धर्मध्वज फरके छे मोरे मंदिरिये...' वह सब गाते-गाते आते थे।

मुमुक्षुः- संख्या कितनी होगी?

समाधानः- उस वक्त यहाँ तो संख्या कम थी। परन्तु बाहरगाँवसे सब मुमुक्षु आये थे। बाहरगाँवके आये थे। लगभग स्वाध्याय मन्दिर पूरा भर गया था। कम नहीं थी।

मुमुक्षुः- गर्दी हो गयी थी।

समाधानः- हाँ, गर्दी हो गयी थी। खिडकी पर और दूसरी जगह खडे थे।

मुमुक्षुः- शीतलप्रसादजी... समयसार विराजमान किया। उस वक्त गर्दी थी।

समाधानः- हाँ, गर्दी थी। खिडकीमें सब लोग खडे थे। शीतलप्रसादजी उस दिन कुदरती यहाँ आये थे, यहाँ थे ही। फिर कोई मन्त्र बोले थे। कुछ भी बोले होंगे।

मुमुक्षुः- उन दिनोंमें कहाँ..

समाधानः- गुरुदेव उदघाटन करते हैं, वह फोटो नहीं आया है। वह नहीं है। खोलते हैं, वह सब नहीं है। संप्रदाय गुरुदेवने छोडा था, नहीं तो गुरुदेव प्रतिष्ठा करते। लेकिन गुरुदेव अभी उन सबमें नहीं थे, इसलिये गुरुदेवने ऐसा कहा।

मुमुक्षुः- आज ही गुरुदेव भगवतीस्वरूप बोले थे। स्वाध्याय मन्दिरमें.. उत्साहका पार नहीं था। ...

समाधानः- स्वाध्याय मन्दिरमें गुरुेदव पधारे, प्रभावना बहुत होनेवाली थी इसलिये