वह शोभी भी अलग थी। गुरुदेव, ऐसे मंगलकारी मंगलमूर्ति गुरुदेव पधारे इसलिये प्रभावना बहुत जोरदार होनेवाली थी, इसलिये उस वक्त सबको उत्साह भी बहुत था और वह शोभा इतनी लगती थी। सबको हर्षका पार नहीं था। ऐसा लगता था।
मुमुक्षुः- पूरे गाँवमें..
समाधानः- उतना हर्ष..
मुमुक्षुः- मैं .. ओफिसमें आया, मैंने आकर देखा तो यह क्या है? ... इसलिये पूछा कि यह क्या है? ऐसा तो कुछ था नहीं। उसने कहा, एक साधु आये हैं। मैंने कहा, साधु आये हो उसमें ऐसा कहाँसे? इसलिये मैं देखने आया। गुरुदेव आहारके बाद चक्कर लगाते थे। गुरुदेवको देखा.. ???
समाधानः- ऐसा लगता था कि मानो तैरता हुआ जहाज हो। बहुत लोग ऐसा कहते थे। ऐसा कहते थे। उस दिन तो भक्तिमें पहलेसे आदत ऐसी कि धजा लेकर घुमे तो भी सबको उत्साह आता था। धजा ले-लेकर फिरते थे। वहाँ जाकर ताली बजाये, भक्ति करे। इतना उत्साह आता था कि मानो अपने कितना करते हैं।
मुमुक्षुः- प्रतिष्ठासे पहले आठ-दस दिनसे..
समाधानः- मंगल.. मंगल..। गुरुदेव प्रतापी पुरुष। चारों ओर प्रभावना होनेवाली थी इसलिये मानो इतना मंगलकारी और बहुत लगता था, सबको बहुत भावना थी। इतना उत्साह था। मंगलमूर्ति गुरुदेव उसमें पधारे इसलिये शोभा भी उतनी। यहाँ रहनेवाले लोग कम थे, परन्तु बाहरसे जो मुमुक्षु थे वह सब आये थे। स्वाध्यायका बहुत था, इसलिये गुरुदेवने स्वाध्याय मन्दिर कहा। स्वाध्याय मन्दिर (नाम) रखिये।
मुमुक्षुः- पोपटभाईने..
समाधानः- लेकिन गुरुदेवको स्वयंको था।
मुमुक्षुः- गुरुदेवको स्वाध्यायका तो बहुत था।
समाधानः- बहुत था। प्रतिष्ठाका गुरुदेवने नक्की किया था। समयसार आदिका गुरुदेवने नक्की किया था। यहाँ समयसारकी प्रतिष्ठा करनी। यहाँ हमने आकर उत्थान नहीं किया है। गुरुदेवको शास्त्रका बहुत था न, इसलिये।
मुमुक्षुः- स्थापना करनेका गुरुदेवने आपको ही कहा हो, इसीलिये... नहीं तो..
मुमुक्षुः- आजके दिन जो भी प्रभावना हुयी है उसका .. यहाँ स्वाध्याय मन्दिरमें है।
समाधानः- हाँ, स्वाध्याय मन्दिर है। .. वह बात पूरी अलग थी। अभी सबको... गीत भी ऐसे गाते थे, "सुरेन्द्र आवो गगनना, स्वाध्याय मन्दिरे उतरो, आवो गवैया स्वर्गना, सुवर्णना मेदानमां...' ऐसा सब गाते थे। गगनमेंसे उतरेंगे। सबको ऐसी भावना होती थी। "सुरेन्द्रो आवो गगनना, स्वाध्याय मन्दिरे, कुन्द कुन्दना जय नाद बोलो और