Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३७८ नहीं कर सकता। इसलिये सारभूत वस्तु है उसे ग्रहण करके विचार, वांचन करते रहना। भगवान जिनेन्द्र देवकी महिमा करनी, भगवानकी, गुरुकी, शास्त्रका विचार करना, शास्त्र पढना, उस ओर मनको लगा दो।

किसीका कोई कुछ नहीं कर सकता। इन्द्र, नरेन्द्र.. ऊपरसे कोई इन्द्र उतरे तो भी किसीको मदद नहीं कर सकता। जिसका जो बनना होता है वही बनता है। ऊपरसे इन्द्र आये या बडे चक्रवर्ती हो, कोई किसीका कुछ नहीं कर सकता, तो मैं कर सकता हूँ? इसलिये मनको बदल देना। अतिशय दुःख होता हो तो मनको बदल देना, शांति रखना। शांतिके सिवा उसका दूसरा कोई उपाय नहीं है। शांति रखनी। विचार बदल देना। और आत्मामें विचार जोड देना। गुरुमें, शास्त्रमें, देवमें विचार जोड देना। मनमें शांति रखनी। मैं तो एक जाननेवाला हूँ। शांतिके सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं है।

चक्रवर्ती किसीका कुछ नहीं कर सकते। जन्म-मरण करता है, वह अपनी भूलसे करता है। छूटता है वह स्वयं पुरुषार्थ करके छूटता है। कोई किसीको कुछ नहीं कर सकता। गुुरु उपदेश दे, भगवान उपदेश दे, लेकिन करना तो स्वयंको है। स्वयं करे तो होता है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!
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