માતાજી! દેવ-ગુરુ-શાસ્ત્ર પ્રત્યેની ભકિતના રાગનો ખ્યાલ આવતો હતો પણ જ્ઞાયક પ્રત્યેની ભકિતનો આપે નવો જ પ્રકાર સમજાવ્યો છે. 0 Play माताजी! देव-गुरु-शास्त्र प्रत्येनी भकितना रागनो ख्याल आवतो हतो पण ज्ञायक प्रत्येनी भकितनो आपे नवो ज प्रकार समजाव्यो छे. 0 Play
(પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી વિષે) 2:20 Play (पूज्य गुरुदेवश्री विषे) 2:20 Play
આપની પાસે આવીએ છીએ ત્યારે નિરંતર આપના મુખમાંથી જ્ઞાયક-જ્ઞાયક એ જ વાત આવે છે. 3:50 Play आपनी पासे आवीए छीए त्यारे निरंतर आपना मुखमांथी ज्ञायक-ज्ञायक ए ज वात आवे छे. 3:50 Play
આ સંસ્કાર પડે છે તે એક વાર જરૂરી છે? 6:50 Play आ संस्कार पडे छे ते एक वार जरूरी छे? 6:50 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી કહેતા ‘‘પામરને પામર નથી કહેતાં પણ પરમાત્મા છો ને પરમાત્મા કહ્યો છે.’’ 8:45 Play पूज्य गुरुदेवश्री कहेता ‘‘पामरने पामर नथी कहेतां पण परमात्मा छो ने परमात्मा कह्यो छे.’’ 8:45 Play
આલંબન લેવું એટલે શું? 15:25 Play आलंबन लेवुं एटले शुं? 15:25 Play
અભિપ્રાય તે દ્રષ્ટિનો વિષય કહેવાય–ઘ્યાનનો વિષય કહેવાય કે જ્ઞાનનો વિષય કહેવાય? 16:15 Play अभिप्राय ते द्रष्टिनो विषय कहेवाय–घ्याननो विषय कहेवाय के ज्ञाननो विषय कहेवाय? 16:15 Play
દ્રષ્ટિને કોઈ આંધળી કહે છે તે બરાબર નથી? 17:15 Play द्रष्टिने कोई आंधळी कहे छे ते बराबर नथी? 17:15 Play
પહલે જો નિર્ણય હોતા હૈ વહ શંકા સહિત હોતા હૈ? 17:50 Play पहले जो निर्णय होता है वह शंका सहित होता है? 17:50 Play
દરેક દ્રવ્ય પોતાના દ્રવ્ય-ક્ષેત્ર-કાળ-ભાવમાં રહેલું છે અને પરદ્રવ્યથી નાસ્તિરૂપ છે 19:40 Play दरेक द्रव्य पोताना द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावमां रहेलुं छे अने परद्रव्यथी नास्तिरूप छे 19:40 Play
मुमुक्षुः- माताजी! देव-गुरु-शास्त्रकी भक्तिका तो ख्याल आता था कि भगवानकीइसप्रकार भक्ति (करनी), गुरुकी इसप्रकार भक्ति करनी। ज्ञायककी भक्ति, आप यह एक नया ही प्रकार दो दिनसे समझाते हो।
समाधानः- उसकी महिमा आये बिना आगे नहीं बढा जा सकता। मात्र शुष्कतासेआगे बढे तो वहाँ अटक जाता है। ज्ञायककी महिमा आये तो ही आगे बढ सकता है। ज्ञायककी भक्ति आये तो ही आगे जा सकता है।
मुमुक्षुः- आपने एक बात बहुत सुन्दर की थी, ज्ञायकका लक्षण ... मात्र शुष्कताहो जायेगी तो प्राप्त नहीं होगा। महिमापूर्वक..
समाधानः- महिमापूर्वक होना चाहिये। बहुत लोग कहते हैं न कि भक्तिसे..अन्दर ज्ञायककी भक्ति आनी चाहिये, तो आगे जा सकता है। वह भक्ति पहचानकर, ज्ञानपूर्वककी भक्ति, ज्ञायकको पहचानकर भक्ति आये। ज्ञायकका लक्षण पहचानकर, यही ज्ञायक हूँ, इसप्रकार उसकी भक्ति आनी चाहिये।
मुमुक्षुः- वचनामृतमें यह बोल था, कल बात की उसमें, उतना ख्याल नहींआता था, जितना इन दो दिनोंमें आया। उस वचनामृतमें-१५३ नंबरके वचनामृतमें तीन पंक्ति है, ज्ञायकके (द्वार पर) टहेल लगानी। उसमें दूसरी तरहसे लिखा है। लेकिन कल आपने विस्तार किया तब ख्याल आया कि इसमें इतना भरा है।
मुमुक्षुः- वचनामृतमें लिखा है, वह दूसरी तरहसे है। ज्ञायककी टहेल लगानी।राजाके दरबारमें...
समाधानः- हाँ, टहेल लगानी, ज्ञायककी टहेल लगानी। आत्माका द्रव्य क्या,आत्माका गुण क्या, आत्माकी पर्याय क्या, सबका विचार करके स्वयं उसकी महिमा लाये।