Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 9.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 38 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-२)

३८

ट्रेक-००९ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- माताजी! देव-गुरु-शास्त्रकी भक्तिका तो ख्याल आता था कि भगवानकी इसप्रकार भक्ति (करनी), गुरुकी इसप्रकार भक्ति करनी। ज्ञायककी भक्ति, आप यह एक नया ही प्रकार दो दिनसे समझाते हो।

समाधानः- उसकी महिमा आये बिना आगे नहीं बढा जा सकता। मात्र शुष्कतासे आगे बढे तो वहाँ अटक जाता है। ज्ञायककी महिमा आये तो ही आगे बढ सकता है। ज्ञायककी भक्ति आये तो ही आगे जा सकता है।

मुमुक्षुः- आपने एक बात बहुत सुन्दर की थी, ज्ञायकका लक्षण ... मात्र शुष्कता हो जायेगी तो प्राप्त नहीं होगा। महिमापूर्वक..

समाधानः- महिमापूर्वक होना चाहिये। बहुत लोग कहते हैं न कि भक्तिसे.. अन्दर ज्ञायककी भक्ति आनी चाहिये, तो आगे जा सकता है। वह भक्ति पहचानकर, ज्ञानपूर्वककी भक्ति, ज्ञायकको पहचानकर भक्ति आये। ज्ञायकका लक्षण पहचानकर, यही ज्ञायक हूँ, इसप्रकार उसकी भक्ति आनी चाहिये।

मुमुक्षुः- वचनामृतमें यह बोल था, कल बात की उसमें, उतना ख्याल नहीं आता था, जितना इन दो दिनोंमें आया। उस वचनामृतमें-१५३ नंबरके वचनामृतमें तीन पंक्ति है, ज्ञायकके (द्वार पर) टहेल लगानी। उसमें दूसरी तरहसे लिखा है। लेकिन कल आपने विस्तार किया तब ख्याल आया कि इसमें इतना भरा है।

मुमुक्षुः- वचनामृतमें लिखा है, वह दूसरी तरहसे है। ज्ञायककी टहेल लगानी। राजाके दरबारमें...

समाधानः- हाँ, टहेल लगानी, ज्ञायककी टहेल लगानी। आत्माका द्रव्य क्या, आत्माका गुण क्या, आत्माकी पर्याय क्या, सबका विचार करके स्वयं उसकी महिमा लाये।

मुमुक्षुः- महिमापूर्वक भक्ति आनी चाहिये।

समाधानः- महिमापूर्वक आनी चाहिये।

मुमुक्षुः- ज्ञायककी भक्ति आनी चाहिये।

समाधानः- ज्ञायककी आनी चाहिये।