Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३८० क्या है, उतनी समझन हुयी है, पढते-पढते, प्रयत्न करते-करते। परन्तु अभी वहाँ जाउँ तो वहाँ कुछ कमी लगे, देरासरमें जाउँ तो वहाँ कुछ कमी लगे।

समाधानः- जहाँ सत्य मिलता हो, वहाँ सत्य जाननेका प्रयत्न करना। सत्य वस्तु जाने, स्वयं जाने तो अन्दर नक्की हो कि यही सत्य है। फिर उसी रास्ते पर स्वयं प्रयत्न करे, उसका विचार करे, उसकी जिज्ञासा (आदि) सब करे। परन्तु सत्य क्या है यह नक्की करनेके लिये सत्संग, जहाँ सत्य बात मिलती हो ऐसे स्थानमें जाकरसत्संग करे तो होता है।

मुमुक्षुः- ऐसे तो बाहर जाती ही हूँ। ववाणिया जाती हूँ, वडवा जाती हूँ। पुस्तक रखे हैं। भक्तिमें मुझे विशेष रस है। आनन्दघनजीके पद, आध्यात्मिक पद अर्थ सहित मिलान करुँ। उसका पूरा मिलान करती हूँ।

समाधानः- वह है, लेकिन अन्दर सत्य ज्यादा नहीं जाने, परन्तु थोडा भी मार्ग तो उसे जानना चाहिये। सत्य जाने बिना आगे नहीं बढ सकता। एक गाँव जाना हो तो किस गाँवमें जाना है, उसका रास्ता जाने बिना (कैसे जायेगा)? भले फिर धीरे- धीरे चले, चलनेमें देर लगे, परन्तु मार्ग तो जानना चाहिये न? कि इस मार्गसे जाना होता है। सच्चे ज्ञान बिना, प्रयोजनभूत ज्ञान बिना, भले भक्ति, उत्साह आदि सब आये, महिमा आये, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आये, आत्माकी महिमा आये, परन्तु सत्य क्या है उसे जाने बिना आगे कैसे जायेगा? सच्चा ज्ञान तो (करना चाहिये)। ज्ञान बिना कैसे जाना होगा? सत्संग करना चाहिये, जो सत्य जानता हो उसे पूछना चाहिये। सच्चे शास्त्र, जहाँ सत्संग हो वहाँ समझना चाहिये। समझनेके लिये प्रयत्न करना चाहिये। मात्र अकेली भक्ति करता रहे तो भी आगे नहीं बढ सकता।

मुमुक्षुः- कमी लगती है, इसीलिये यह खोज और प्रयत्न चालू रखे हैं। इसमें कमी है, कुछ कमी है, कुछ कमी है, अभी कुछ चाहिये।

समाधानः- .. बोलनेकी जरूरत नहीं है। अपनी मान्यतामें फेरफार करना है। बाहर जाना छोड देना ऐसा कुछ उसमें आता नहीं। अपनी मान्यता बदलनी है। मान्यता बदले तो अपनेआप सब फेरफार होता है। कोई देरावासी हो वह कहे, यह मन्दिर आदि क्या? लेकिन तुम सत्य समझो तो अपनेआप सब फेरफार होंगे। गुरुदेव स्थानकवासी संप्रदायमें थे। उन्होंने सब शास्त्र देखे हैं। देरावासी, स्थानकवासी, उसमेंसे उन्होंने फेरफार करके, उनको यह सत्य लगा तो उसे ग्रहण कर लिया।

मुमुक्षुः- ऐसा कह सकते हैं क्या अभी जो धर्मकाल प्रवर्तता है, ऐसा पीछले दो हजार वर्षमें नहीं प्रवर्तता था। कारण कि कुन्दकुन्द स्वामीको प्रत्यक्ष देखनेवाले आप अकेले ही दो हाजर वर्षमें यहाँ हो। वहाँ विदेहक्षेत्रमें..।