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समाधानः- यहाँ धर्मकाल नहीं प्रवर्तता था, ऐसा कैसे कह सकते हैं?
मुमुक्षुः- व्यापकरूपसे।
समाधानः- कुन्दकुन्दाचार्य यहाँ विराजते थे तब धर्मकाल तो प्रवर्तता होगा। नहीं प्रवर्तता ऐसा कैसे कह सकते हैं? गुरुदेवने तो बहुत प्रभावना की। लेकिन कुन्दकुन्दाचार्यदेव विराजते होंगे तब भी प्रभावना हुई होगी।
मुमुक्षुः- जंगलमें थे न।
समाधानः- वह अपेक्षा अलग है। जंगलमें हो वह अपेक्षा अलग है। और अभी हम दूसरी अपेक्षासे कहते हैं। मुनि जंगलमें हो और गाँवमें आये तब हो। यहाँ गुरुदेव तो सब मुमुक्षुओंके बीच, हजारों मुमुक्षुओंके बीच यहाँ निरंतर वाणी बरसाते थे। ४५- ४५ साल तक वाणी बरसती रही। मुमुक्षुओंके बीच रहकर जो लाभ दिया, वह तो कोई अपूर्व है। वह एक अपेक्षा अलग है। बाकी कुन्दकुन्दाचार्यका तो यह शासन कहलाता है।
कितनी प्राचीन प्रतिमाएँ देखें तो सबमें कुन्दकुन्द आम्नाय, कुन्दकुन्द आम्नाय ऐसा आता है। वे तो महा समर्थ आचार्य हो गये। उस वक्त कुछ अलग हुआ होगा, इस वक्त कुछ अलग है। गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य, यहाँ गुरुदेव पधारे वह महाभाग्यकी बात है। पहले जो क्रियामें थे और अभी सबको चैतन्यकी रुचि और चैतन्यका विचार करना सीखे, यहाँ सौराष्ट्रमें ही नहीं हर जगह प्रभावना हुयी। कुन्दकुन्दाचार्य विराजते थे वह अलग था। मुनिराज यहाँसे विदेहक्षेत्रमें गये और वहाँसे वापस आये। सबको उपदेश दिया, वह काल उस समयमें कुछ अलग ही हुआ होगा। वह अलग होगा। अभी यह अलग है।
मुमुक्षुः- कुन्दकुन्दस्वामी कहीं लिखकर नहीं गये हैं कि मैं विदेहक्षेत्रमें जाकर (सुनकर यह लिख रहा हूँ)।
समाधानः- उन्होंने स्वयं भले ही नहीं लिखा हो, परन्तु शास्त्रोंमें आता है, आचार्य लिखते हैं, पंचास्तिकायकी टीकामें आता है, देवसेनाचार्य आदि सब कहते हैं। शास्त्रमें लेख आते हैं। शिलालेखोंमें आता है।
मुमुक्षुः- शिलालेख परसे कहे। आप तो साक्षात देखकर यहाँ बात करते हो।
समाधानः- वह अपेक्षा अलग है, यह अपेक्षा अलग है। दोनों अपेक्षासे समझना है। दोनों अपेक्षासे समझना। मुनिराज थे, महासमर्थ आचार्य थे। उस वक्त साक्षात उस देहमें जो विदेहक्षेत्रमें सीमंधर भगवानके साक्षात दर्शन करके, वहाँ वाणी सुनकर इस भरतक्षेत्रमें पधारे, उस समयका माहोल उस वक्त कैसा हुआ होगा? वह कुछ अलग ही हुआ होगा।