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मुमुक्षुः- एक अपेक्षासे तो गुरुदेव और आप, दोनों साक्षात वाणी सुनकर ही यहाँ पधारे हो। वे पहले गये और वापस आये। आप पहली बार यहाँ आये।
समाधानः- आपको जो अर्थ लेना हो वह लीजिये।
मुमुक्षुः- चतुर्थ काल कहते हैं, यहाँ सोनगढमें चतुर्थ काल वर्तता है।
समाधानः- जिसे हित हो, जैसा अर्थ लेना हो वैसा ले सकते हैं। बाकी सब अपेक्षाएँ समझनी है।
मुमुक्षुः- माताजी! आज गुरुदेवका परिवर्तनका दिवस है।
समाधानः- गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य, तीर्थंकर जैसा कार्य किया। तीर्थंकरका द्रव्य तो हो, परन्तु यह तो तीर्थंकर जैसा गुरुदेवने अभी काम किया। इस भरतक्षेत्रमें वाणी कोई अलग ही थी। उनके जैसी वाणी किसीकी नहीं थी। पूरे संप्रदायका परिवर्तन किया। वह कोई अलग बात थी। वह कोई आसान बात नहीं थी। पूरे संप्रदायमें उनके प्रति सबको महिमा थी। संप्रदायमें लोगोंका समूह इकठ्ठा होता था, वह सब छोडकर एक ओर बैैठकर स्वयंने परिवर्तन किया। संप्रदायमें खलबली मच गयी, तो भी अकेलेने अन्दर पुरुषार्थ करके, सब सहन करनेके लिये तैयार थे। समाचार पत्रोंमें सब जगह खलबली मच गयी थी।
यहाँ एकान्त स्थानमें कोई आये, न आये, किसीकी परवाह नहीं की। भले थोडे लोग आये, हजारोंकी जनसंख्यामें बैठकर गुरुदेव व्याख्यान करते थे। उसके बदले यहाँ एकान्तवासमें आकर बैठ गये। परिवर्तन किया, ऐसा लोगोंको मालूम हुआ तो स्थानकवासीमें खलबली मच गयी। उनको ऐसा था, अन्दर जो मानता हूँ वह बात और बाहरमें भेस अलग है। इसलिये भेसका भी परिवर्तन कर दिया। परन्तु गुरुदेव पर लोगोंको इतनी भक्ति थी कि कानजीस्वामी जो कहते हैं वह सब सत्य है। और विचारपूर्वक ही सब करते हैं। कानजीस्वामीके लिये स्थानकवासी संप्रदायमें ऐसा कहते थे, उनके जैसे कोई साधु नहीं थे, वहाँ स्थानकवासी संप्रदायमें। उन्होंने जो किया होगा विचार करके किया होगा। तुरंत प्रथम पर्युषणमें ही लोगोंका समूह आया था। संप्रदायका आग्रह छोडकर बहुत लोग आने लगे।
मुमुक्षुः- परिवर्तनका दिवस भी महावीरस्वामीके जन्मजयंतिके दिन ही..
समाधानः- तेरसके दिन ही गुरुदेवने परिवर्तन किया। यहाँ छोटी पहाडी है न? यहाँ सोनगढमें छोटी पहाडी पर। स्टार ओफ इन्डिया, कहलाती है। उसका नाम ही वही था। उस बंगलेका नाम पहलेसे स्टार ओफ इन्डिया था।
मुमुक्षुः- हिन्दुस्तानका तारा।
समाधानः- हिन्दुस्तानका तारा।