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मुमुक्षुः- कुदरती कैसा मेल है! कुन्दकुन्दस्वामीके नामका अर्थ भी सुवर्ण ही होता है न?
समाधानः- हाँ, सुवर्ण होता है।
मुमुक्षुः- और यह सुवर्णपुरी।
समाधानः- यह सुवर्णपुरी। संप्रदायके सामने टक्कर झेलकर सब फेरफार किया। सत्य मार्ग है, परन्तु मात्र क्रिया नहीं, अंतरंगसे उन्होंने तो...
स्वानुभूतिका मार्ग, उस मार्गके साथ दिगंबर मार्ग आता है। उसमेंसे धीरे-धीरे उनकी प्रभावना बढती गयी। सब दिगंबर इस ओर मुडने लगे। लेकिन मात्र एक भेस धारण किया इसलिये दिगंबर ऐसा नहीं। उनका तो अंतरमेंसे भावसहित सब उपदेश उस प्रकारका था।
मुमुक्षुः- भावसहित और सब न्यायसे समझमें आये, युक्तिसे समझमें आये, इस तरह सब (समझाया)।
समाधानः- न्यायसे, युक्तिसे सबको बैठ जाय, वैसे। चारों ओरसे। ... सब आता है। कुन्दकुन्दाचार्यके शास्त्र अभी तक चले।
मुमुक्षुः- प्रभावनामें आपका जातिस्मरण भी एक उतना ही प्रबल कारण था। उन्हें भले आभासा होता था कि मैं तीर्थंकर होनेवाला हूँ। परन्तु प्रत्यक्षरूपसे जो ख्याल आ गया..
समाधानः- आप सबको जो अर्थ करना हो वह करो, बाकी तो तीर्थंकरका द्रव्य था। तीर्थंकर तो तीर्थंकर ही थे। उन्होंने तो इस भरत क्षेत्रमें वाणी बरसायी। ऐसी जोरदार उनकी आत्मस्पर्शी वाणी सबको असर करे, ऐसी। इस कारणसे सब आत्माकी ओर मुडे। हजारों मुमुक्षु हो गये। वह तो एक महापुरुष हो उनके पीछे सब होता है। तीर्थंकर भगवान जगतमें सर्वोत्कृष्ट कहलाते हैं। जगतमें सर्वोत्कृष्ट हो तो तीर्थंकरदेव हैं।
मुमुक्षुः- शास्त्रोंका गुजराती भाषामें (अनुवाद हुआ)।
समाधानः- वह तो एक महापुरुष हो, तीर्थंकर द्रव्य यहाँ पधारे। तीर्थंकर जैसा ही काम किया। उनके पीछे सब कुछ होता है। भगवानका समवसरण हो, वहाँ सबकुछ होता है। .. एक भगवानकी होती है, बाकी सब तो उनके पीछे होते हैं। सब उनके दास हैं। सबकुछ होता है, परन्तु समवसरणमें महिमा एक भगवानकी होती है। उसमें सब मुनि होते हैं, गणधर, ऋद्धिधारी आदि सब होते हैं। इन्द्र, चक्रवर्ती आदि सब होते हैं। महिमा एक भगवानकी होती है। इन्द्र समवसरण रचता है, तब कहता है, हे भगवान! यह रचना हो गयी, वह आपके कारण रचना हो गयी है। स्वयं ही रचकर स्वंयको ही आश्चर्य होता है। आपका ऐसा कोई पुण्य है, ऐसा सर्वोत्कृष्ट पुण्य है,