Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३८४ इस कारणसे यह सब रचना हुयी है।

मुमुक्षुः- इन्द्र उनके पुण्य देखकर आश्चर्यचकित होता है, उसमें वाणी भी ऐसी होती है कि समझनेवालेको ऐसा लगता है कि ऐसा तो हमें कभी मिला ही नहीं।

समाधानः- भगवानकी मुद्रा ऐसी, भगवानका समवसरण ऐसा, भगवानकी वाणी ऐसी, सबकुछ ऐसा ही होता है। भगवानकी दिव्यध्वनि ऐसी। यहाँ गुरुदेवकी वाणी ऐसी। ऐसी वाणी सुनकर लोग थँभ जाते थे। सब टगरटगर देखते रहते थे और क्या कहते हैं? कुछ अलग ही कहते हैं, इस प्रकार सबके हृदयका परिवर्तन हो जाता था। वाणी तो, वाणीकी तो क्या बात करनी?

मुमुक्षुः- गुरुदेवके उपदेशका मुख्य सूर, तू परमात्मा है वह या परका अकर्तापना?

समाधानः- तू परमात्मा है, वह।

मुमुक्षुः- वह मुख्य सूर था?

समाधानः- मुख्य। अपनी अस्ति ग्रहण करनी। तू ज्ञायक परमात्मा है। तू परमात्मा है, ऐसा ग्रहण कर तो उसमेंसे परमात्मपद प्रगट होगा। उसमें अकर्तापना आ जाता है। परमात्माको ग्रहण करे उसमें। उसमें सब समा जाता है। अस्ति ग्रहण करे उसमें नास्ति समा जाती है। परपदार्थका कर्ता नहीं है। तू स्वयं सर्वोत्कृष्ट परमात्मा है।

कैसा परमात्मा? ज्ञायक परमात्मा। जाननेवाला परमात्मा, कर्ता नहीं है। परमात्माका स्वरूप विचारे तो परमात्मा कैसा परमात्मा? ज्ञायक परमात्मा अनंत शक्तिओंसे भरपूर अनंत महिमावंत। ज्ञायक जाननेवाला हुआ, उसमें कर्तृत्व छूट गया। जाने सो कर्ता नहीं, कर्ता सो जाने नहीं। "करै करम सो ही करतारा, जो जाने सो जाननहारा'। जाननेवाला हो वह कुछ करता नहीं, ज्ञाता रहता है।

मुमुक्षुः- उसका उपाय, आपने सम्यक जयंतिके दिन कहा कि ज्ञाताकस डोरी लेकर उसके सन्मुख हो-स्वरूप सन्मुख हो, वह उसका उपाय।

समाधानः- ज्ञाताकी डोरी ग्रहण कर ले। ज्ञायक ही हूँ, ऐसा ग्रहण करके स्वसन्मुख जाय तो कर्तृत्व छूट जाय।

मुमुक्षुः- माताजी! उस दिन देखा कि आपने उत्तर देनेसे पहले तो गुरुदेवका कितना विनय, बहुमान (करके) आगे तो गुरुदेवको ही रखा। गुरुदेवका सब उपकार है, गुुरुदेवने ही सब दिया है, गुरुदेवका ही सब है। उसके बाद आपने उत्तर दिया। आप जहाँ भी देखो, वहाँ ऐसा लगे कि हर जगह आप पहले तो गुरुदेवको ही स्थापते हो।

समाधानः- गुरुदेवको ही स्थापना होता है। दूसरा क्या स्थापन करना? जिन्होंने मार्ग बताया, परमात्माका स्वरूप बताया, ऐसे गुरुदेवकी ही स्थापना होती है।

मुमुक्षुः- मैं तो दासानुदास हूँ। आप कैसे शब्द बोलते थे।