Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 385 of 1906

 

ट्रेक-

०६३

३८५

समाधानः- अपना कुछ भी रखना कि मैं... वह आत्मार्थीका लक्षण ही नहीं है।

मुमुक्षुः- अदभुत विनय! बडोंको सर पर रखनेका जो आप वचनामृतमें कहते हो वह आपके जीवनमें साक्षात ऊतर गया हो, ऐसा लगता है।

समाधानः- जिसे मुक्तिके मार्ग पर जाना है, अपना स्वभाव प्रगट करना है, उसे देव-गुरु-शास्त्र साथमें ही होते हैं। स्वयं ज्ञायक परमात्मा है, लेकिन साधक दशा है। साधक दशावालेको बीचमें देव-गुरु-शास्त्र उसके साथ (होते हैं), उनकी महिमा आये बिना रहती ही नहीं। नहीं तो "मैं कुछ हूँ' उसे बीचमें आये तो उसकी साधक दशा ही नहीं रहती है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!
?? ?