समाधानः- आशय पकडे बिना हाँ कहे तो अवर्णवाद नहीं (होता), परन्तु वह सत्य समझा नहीं। समझे बिना हाँ कहता है। समझे बिना भावनासे हाँ कहे, भक्तिसे कहे। सच्चा तो कब कहनेमें आये कि समझकर हाँ कहे तो।
मुमुक्षुः- माताजी! एक बार अनुभूति प्राप्त होनेके बाद वह जब भी चाहे तब निर्विकल्प हो सकता है?
समाधानः- जिसे स्वानुभूति प्राप्त हुयी है, उसने मार्ग जान लिया है कि किस मार्गसे इस ज्ञायकमें लीनता होती है। यह ज्ञायक है, यह सब विभाव (है)। यह परद्रव्य मेरा स्वरूप नहीं है। यह विभाव भी मेरा स्वभाव नहीं है। मैं उससे भिन्न, ऐसी उसे श्रद्धा-प्रतीत, ज्ञायककी परिणति प्रगट हुयी है, अनुभूति हुयी है। मार्ग जान लिया है कि किस मार्गसे भावनगर जाना होता है। वह सब मार्ग जान लिया है। मार्गका उसे संतोष है। परन्तु कैसे चलकर जाना, कोई चलकर जाता है, कोई धीरे-धीरे जाता है, कोई उतावलीसे जाता है।
इस प्रकार उसे स्वरूपमें लीन होना, वह वर्तमानकी शुद्धि-निर्मलता होती है उस अनुसार वह अन्दर निर्विकल्प होता है। वर्तमान उसकी भूमिकाकी निर्मलता हो, शुद्धता हो उस अनुसार उसे शुद्धउपयोगकी परिणति होती है। बाकी ज्ञायककी भेदज्ञानकी परिणति निरंतर रहती है। खाते-पीते ज्ञायक.. ज्ञायककी दशा ही होती है। भेदज्ञानकी दशा चालू ही है। खाते-पीते, जागते-सोते, स्वप्नमें भेदज्ञानकी धारा चालू है। परन्तु निर्विकल्प दशा उसकी भूमिका अनुसार होती है।
पाँचवे गुणस्थानमें उसकी भूमिका अनुसार, छठ्ठे-सातवेमें अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें होती है। चौथे गुणस्थानमें उसकी निर्मलताकी तारतम्यता चौथेवालेकी जिस प्रकारकी होती है, उसके अनुसार उसे निर्विकल्प दशा होती है। बाकी तो अपना स्वभाव है। वह स्वभाव, जैसे पानी पानीको खीँचता हुआ अपनी ओर जाता है, ऐसे स्वयं स्वभावकी ओर मुडा, स्वभाव-ओर उसकी परिणति दौड रही है, लेकिन उसे जो विरक्ति, लीनता, चारित्रमें जिस प्रकारकी लीनता होती है, उस अनुसार उसे निर्विकल्प दशा होती है। स्वरूपाचरण चारित्र चौथे गुणस्थानमें उसकी जैसी निर्मलता और तारतम्यता हो, उस अनुसार वह निर्विकल्प दशाको प्राप्त करता है।
मुमुक्षुः- चौथेवालेको रोज हो सकती है?
समाधानः- ऐसा कुछ नहीं, उसकी दशा हो उस अनुसार हो सकती है। वह कोई नियमीत नहीं होती। रोज नहीं हो ऐसा भी नहीं है, होती ही है ऐसा भी नहीं है। उसकी निर्मलता अनुसार होती है। रोज नहीं हो या अमुक दिनोंके बाद ही हो, ऐसा कोई नियम नहीं है। उसकी निर्मलता अनुसार होती है। छठ्ठे गुणस्थानमें तो अंतर्मुहूर्त-