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मुमुक्षुः- प्रमाण .. का अभिप्राय ऐसा है कि आशय ग्रहण करना।
समाधानः- आशय ग्रहण करना। गुरुदेवका वचन प्रमाण। गुरुदेवने कहा, तू भगवान परमात्मा है। भगवान परमात्मा ऐसा कहा, वह ग्रहण किया कब कहनेमें आये? कि वास्तवमें मैं भगवान परमात्मा ही हूँ, ऐसी अंतरसे श्रद्धा आये तो वचनको प्रमाण किया, कहनेमें आये। अंतरमेंसे निःशंकता होनी चाहिये। निःशंकताके कारण आगे जा सकता है। बाहरमें गुरुदेवकी प्रतीति, जो गुरुदेव कहे वह प्रमाण। अंतरमें ज्ञायक है सो ज्ञायक है। ज्ञायककी प्रतीति दृढ होनी चाहिये। यह ज्ञायक है वही मैं ज्ञायक हूँ। उसमें चलविचलता शंका नहीं। यह ज्ञायक सो मैं ज्ञायक ही हूँ। ऐसे ज्ञायकको पहचानकर ऐसा निःशंक हो जाय तो उसमें स्थिर होनेके समर्थ होता है। ऐसा शास्त्रमें आता है। ऐसा निःशंक हो तो उसमें लीनता होती है। निःशंकताके बिना, उसे पहचाने बिना आगे नहीं जा सकता।
मुमुक्षुः- निःशंकता नहीं है तो सच्चा प्रमाण भी नहीं कह सकते।
समाधानः- निःशंकताके बिना उसे सत्य माना नहीं है।
मुमुक्षुः- गुरुदेव कहते हैं कि हाँ ही कहना, कल्पना मत करना।
समाधानः- हाँ, हाँ ही कहना, कल्पना मत करना। सब कहते हैं। हाँ ही कहना। तू ज्ञायक ही ऐसा बराबर नक्की करना। अन्दरसे हाँ कहना। हाँ कहना, तो अन्दरसे तेरी पर्याय प्रगट होगी, तो ज्ञायक तेरे हाथमें आयेगा, तो ज्ञायकदेवके दर्शन होंगे। जैसे अंजन चोरको भगवानके दर्शन हुए। अकृत्रिम चैत्यालयके (दर्शन हुए), वैसे तुझे इस चैतन्य भगवानके दर्शन होंगे। वह तो फिर अंतरमें उतर गये हैं, केवलज्ञान तक पहुँच गये हैं।
वैसे तू अन्दरमें (निःशंकता प्रगट कर) भगवानके दर्शन होंगे। गुरुदेव बताते हैं, तू अन्दर देख, अन्दर तुझे भगवाने दर्शन होंगे। चैतन्यदेवके। गुरुदेवके इस वचनको प्रमाण करके अन्दर जाय तो चैतन्यदेवके दर्शन हो।
मुमुक्षुः- आशय पकडमें नहीं आया हो और हाँ कहे तो गुरुदेवका अवर्णवाद हुआ कहनेमें आये?