४१० अंतर्मुहूर्तमें होती है। चौथेकी निर्मलता हो उस अनुसार होती है। रोज होवे ही नहीं, ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है।
मुमुक्षुः- शुद्धोपयोगका कोई काल होता है, ऐसा कुछ नहीं है कि इस कालमें शुद्धउपयोग होता है।
समाधानः- ऐसा कोई काल नहीं होता। उसकी जैसी परिणति। वर्तमान निर्मलता, उसकी शुद्धि (हो), उस अनुसार उसे होता है। वर्तमानकी जैसी विरक्ति, शुद्धिकी परिणति हो उस अनुसार उसे निर्विकल्प दशा होती है।
मुमुक्षुः- सम्यग्दृष्टिको ऐसी इच्छा भी नहीं होती। इच्छा तो राग है, ऐसा राग भी होता नहीं कि शुद्धोपयोग हो।
समाधानः- विकल्पसे निर्विकल्प हुआ नहीं जाता। इच्छा है वह विकल्प है। उस विकल्पसे निर्विकल्प नहीं हुआ जाता। अन्दरकी सहज निर्मलताकी परिणति, शुद्धिकी परिणतिसे अंतरकी विरक्तिसे निर्विकल्प दशा होती है। भावना एक अलग बात है। परन्तु भावना या कृत्रिमतासे अंतरमें नहीं जा सकता। इच्छा-रागसे अन्दर नहीं जा सकता। वीतरागी परिणतिसे अंतरमें जाना होता है। भले शुभभाव हो, भावना है, परन्तु वह विकल्प टूटकर अन्दर जाता है। विकल्प खडा रखकर अन्दर नहीं जा सकता।
मुमुक्षुः- पूर्व भूमिकामें परपदार्थसे विरक्ति,..
समाधानः- अन्दर ज्ञायककी दशाके साथ विरक्ति होती है। स्वरूपकी लीनता, अस्तित्वमें स्वरूपकी लीनता एवं शुद्धि, अपनी निर्मलताकी परिणति, उस कारणसे जाता है। और अस्तित्व-ओर उसकी... चौथे गुणस्थानमें उसकी जैसी विरक्ति हो और स्वरूप- ओरकी लीनता, निर्मलता। बाकी दशामें उतना फर्क नहीं पडता। पाँचवे गुणस्थान जैसी दशा नहीं होती।
मुमुक्षुः- भूमिका अनुसार।
समाधानः- भूमिका अनुसार होती है।
मुमुक्षुः- फिर भी कोई प्रतिबन्ध भी नहीं है कि एक महिने पहले नहीं होती, दो महिने पहले नहीं होती, ऐसा प्रतिबन्ध नहीं है।
समाधानः- ऐसा प्रतिबन्ध नहीं है। ऐसा नहीं है। कोई दिनका प्रतिबन्ध नहीं है।
मुमुक्षुः- जैसे आप कहते हो, घोडा ... छलांग लगाये, वैसे कोई बार ऐसी दशा आवे तो..
समाधानः- घोडा छलांग भी मारता है। ऐसा होता है। उसकी भूमिका पलटकर नहीं। उसकी पुरुषार्थकी डोरी कभी छलांग मारे, कभी धीमी चले, उसे किसी भी प्रकारका प्रतिबन्ध है। ज्ञायककी डोर अपने हाथमें है। जिस प्रकार उसकी निर्मलता और लीनता