Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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विशेष होती है, उस अनुसार होती है। कभी सविकल्प दशामें रुके, कोई बार निर्विकल्प दशामें जाता है। हठ करके विकल्पसे आगे नहीं जा सकता। उसकी निर्मलताकी परिणतिसे आगे जाना होता है।

मुमुक्षुः- हठसे होता नहीं और भूमिका विरूद्ध भी नहीं होता।

समाधानः- भूमिका विरूद्ध नहीं होता।

मुमुक्षुः- माताजी! .. शुद्धनय कहता नहीं, उसका क्या अर्थ है? साधकको .. शुद्धनयका आलंबन छूटता नहीं, वह कैसे बन सकता है? क्योंकि उपयोगमें तो चंचलता होती है।

समाधानः- गुरुदेवने, शुद्धनय किसे कहते हैं, निश्चय किसे कहते हैं, व्यवहार किसे कहते हैं, कोई जानता नहीं था। गुरुदेवने स्पष्ट कर-करके अन्दरसे रहस्य खोलकर समझाया है और स्पष्ट भी उतना किया है कि कुछ बाकी नहीं रखा। यह गुरुदेवका परम-परम उपकार है। कोई कुछ जानता नहीं था। यह सब रहस्य गुरुदेवने खुल्ले किये हैं। मैं तो उनका दास हूँ। गुरुदेवने जो स्पष्ट किया है, वह कोई अपूर्व रहस्य खुल्ला किया है, स्पष्ट किया है। गुरुदेवका ज्ञान अलग, गुरुदेवकी वाणी अलग, गुरुदेवका आत्मा अलग, सब अलग ही था। गुरुदेवने जो स्पष्ट किया है, इस भरतक्षेत्रमें जन्म लेकर जो उपकार किया है, वह उपकार कोई अपूर्व है। उनका परम-परम उपकार है।

परमात्म तत्त्वमें ध्यानावली नहीं है, ध्यानावली भी नहीं है। परमात्मतत्त्व अनादिअनन्त शुद्ध है। शुद्ध स्वरूपमें ध्यानावली एक साधकदशा है। साधकदशा मूल जो वस्तु है, पूर्ण वस्तु है, पूर्ण सामर्थ्यसे भरी हुयी जो वस्तु है, उसमें ध्यानावली साधकदशा है। साशकदशा-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सब साधक दशा है। वैसे यह ध्यानावली भी साधकदशा है।

जो पूर्ण सामर्थ्यसे भरपूर वस्तु है, उसके अन्दर ध्यानावली कहनी, यह धर्मध्यान, शुक्लध्यान, वह सब ध्यान पूर्ण स्वरूपमें नहीं है। द्रव्यका स्वरूप जानना। द्रव्य पर दृष्टि रखे। ज्ञायकके मूल स्वरूपमें यह ध्यानावली भी नहीं है। क्योंकि वह अनादिअनन्त वस्तु है। उसे यदि पहचाने नहीं, उस वस्तुका आश्रय न ले तो ध्यान भी नहीं हो सकता। इसलिये वस्तुके अन्दर ध्यानावली भी नहीं है। शुभभाव तो एक ओर रहे, अशुभभाव भाव एक ओर रहे, लेकिन यह साधनाकी पर्याय जो ध्यानावली है, वह भी आत्मामें नहीं है। ऐसा बराबर स्वरूप समझे तो ही उसकी साधकदशा होती है।

मैं ज्ञायक परिपूर्ण सामर्थ्यसे भरा, अनन्त अपूर्व महिमावंत वस्तु हूँ। पूर्ण पर दृष्टि है। अनादिअनन्त वस्तु शाश्वत है, उस पर दृष्टि है। तो भी साधकदशा बीचमें आती है, उसे गौण करता है। द्रव्यदृष्टिमें वह गौण है। तो भी ध्यान बीचमें आये बिना रहता नहीं। ध्यानावली बीचमें आये बिना रहती नहीं। परन्तु वह ध्यानावलीको द्रव्यदृष्टि निकाल