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समाधानः- शुद्धउपयोग तो स्वरूपमें लीन हो जाय, उसे शुद्धउपयोग कहनेमें आता है। शुद्ध परिणति दोनों समय (रहती है)। बाहर सविकल्प दशामें होवे तो भी शुद्ध परिणति रहती है। शुद्ध परिणति चालू रहती है। बाहरमें शुभउपयोग होवे या अशुभउपयोग हो, उपयोग बाहर होवे तो भी परिणति-शुद्ध परिणति तो चालू ही रहती है। भेदज्ञानकी परिणति चालू रहती है। उसको शुद्ध परिणति कहनेमें आता है। सहज ज्ञायककी परिणति रहती है, शुद्ध परिणति चालू रहती है। उपयोग बाहर होवे तो भी शुद्ध परिणति चालू रहती है। स्वरूपमें लीन होवे तो शुद्ध परिणति और शुद्धउपयोग दोनों होते हैं।
... गुरुदेव विराजते थे उस वक्त यह कुछ नहीं था। मैं तो मन्दिरमें बैठी रहती थी।
मुमुक्षुः- .. दर्शन करनेकी इच्छा हो..
समाधानः- .. अन्दर आत्माका वहाँ बैठे-बैठे... गुरुदेवने बहुत स्पष्ट किया है। शास्त्रमें तो सब आता ही है कि भगवान महाविदेहक्षेत्रमें विराजते हैं। सीमंधर भगवान महाविदेहमें विराजते हैं। पाँच विदेह है उसमें सबमें भगवान विराजते हैं। जंबू द्विपमें महाविदेह है उसमें सीमंधर भगवान विराजते हैं। पुष्कलावती (नगरीमें) भगवान विराजते हैं। सीमंधर भगवान समवसरणमें विराज रहे हैं। ... यहाँ वीतरागदेवका विरह हुआ है। केवलज्ञानी या वीतराग ...
दिव्यध्वनि छूट रही है, समवसरण है, देव और इन्द्रों ऊपरसे आते हैं, मुनिओंका समूह है। भगवानकी दिव्यध्वनि सुनकर बहुत मुनि होते हैं, श्रावक होते हैं, सम्यग्दृष्टि होते हैं।
मुमुक्षुः- कुन्दकुन्द भगवान वहाँ पधारे होंगे उस वक्त तो आपने साक्षात उनकी मुखमुद्रा देखी होगी। आपको तो बराबर..
समाधानः- मुनिराजकी क्या बात करनी? कुन्दकुन्दाचार्य महा समर्थ मुनिराज।
मुमुक्षुः- आप मौजूद थे। आपकी मौजूदगी, गुरुदेवकी मौजूदगी..
समाधानः- भगवान समवसरणमें महाविदेह क्षेत्रमें विराजते हैं।
मुमुक्षुः- भगवानकी दिव्यध्वनि छूटती हो तब तो..
समाधानः- जिस गाँवमें विराजते हों, वहाँ रोज जाना होता है। भगवान तो विहार करते हैं। विहार करे तब विहारमें जो साथमें रहते हैं, वे निरंतर सुनते हैं। एक गाँवसे दूसरे गाँवमें भगवान विहार करते हैं। उसमें जो श्रावक दूसरे गाँवमें जाते हैं, वे सब निरंतर सुनते हैैं। जिस गाँवमें भगवान विराजते हैं, वहाँ निरंतर सुननेका योग बनता है।
मुमुक्षुः- भगवानका विहार होता होगा, गति एकदम तेज होती होगी। जैसे यह