Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

४२६ मोटर, प्लेन जाते हैं वैसे गति होगी? या सामान्यरूपसे..

समाधानः- भगवानका विहार? भगवान तो आकाशमें चलते हैं। भगवान आकाशमें चलते हैं। नीचे देव कमलकी रचना करते हैं। भगवानके चरण जहाँ पडे वहाँ देव सुवर्ण कमल रचते हैं। मानो भगवान कमलमें चलते हो, ऐसा लगे!

मुमुक्षुः- भगवान तो ऊपर विराजते हैं तो अशक्त आदमी ऊपर कैसे जा सके?

समाधानः- भगवानके समवसरणकी सिढीयाँ चढे तो अशक्त हो वह शक्तक्तिवान हो जाता है। अशक्त कोई रहता ही नहीं। शास्त्रमें आता है। बहेरे सुनने लगते हैं, ऐसा आता है। भगवानका अतिशय ऐसा है। गूंगे बोलने लगते हैैं, अँधा देखने लगता है। सिढीयाँ चढनेमें उसे कोई तकलीफ नहीं होती है।

... सम्यग्दर्शनके एकदम समीप आ जाय, उसकी विचारधारा अलग जातकी होती है। परन्तु उसके पहले जिसे जिज्ञासा है तो जिज्ञासा करे कि आत्मा कैसा है? कैसे पहचाना जाय? उसकी लगनी लगाये। आत्मा जाननेवाला है, ज्ञायक है। यह शरीर मैं नहीं हूँ, यह विभाव मेरा स्वभाव नहीं है, आकुलतारूप है। मैं जाननेवाला एक ज्ञायकतत्त्व अनादिअनन्त शाश्वत हूँ। उसका विचार करता रहे। मैं ज्ञायक हूँ, मैं आनन्दसे भरा आत्मा हूँ, उसके विचार करता रहे। शास्त्रमें जो (आता है कि) द्रव्य-गुण-पर्याय आत्माके क्या? परद्रव्यके क्या? उन सबका विचार करता है। उसे एक आत्माके सिवा कहीं चैन नहीं पडता। कहीं ओर रुचता नहीं। एक आत्माके सिवा कहीं रुचता नहीं। विकल्पमें उसका मन टिकता नहीं। बार-बार आत्माकी ओर जाता है। आत्मा कैसे पहचानूँ? ऐसी लगनी उसे दिन और रात लगी है। एकदम समीप हो जाय, उसकी तो क्या बात करनी? उसे तो एकदम तीव्र लगनी लगी है। आत्मा.. आत्माके सिवा उसे कहीं रुचता नहीं।

मुमुक्षुः- ...

समाधानः- हाँ, शुभभाव होता है, लेकिन एकदम लगनी लगी होती है। विकल्प मुझे नहीं चाहिये, ज्ञायक कैसे प्रगट हो, ऐसी अन्दरसे गहराईसे लगनी लगी होती है। शुभभाव होते हैं, परन्तु आत्मा जाननेवाला है वह मैं हूँ, ऐसे लक्षणसे पहचानकर नक्की करे कि यह जाननेवाला है वही मैं हूँ, उसके सिवा बाकी सब मुझसे भिन्न है, वह मेरा स्वभाव नहीं है। यह सब मुझसे भिन्न पर है। मेरा स्वभाव भिन्न है, यह विभाव होता है वह भी मेरा स्वभाव नहीं है। ऐसी उसे लगनी लगी है। मैं ज्ञायक ही हूँ, ऐसा निर्णय करके आगे जाता है। निश्चय करके। यह शुभभाव मैं नहीं हूँ, मैं तो जाननेवाला हूँ। तीव्र लगनी लगी है। बारंबार मैं जाननेवाला हूँ। चाहे जो विकल्प आये, शुभभाव आये तो भी मैं जाननेाला, जाननेवाला, ऐसी उसे अंतरमेंसे दृढता और अमुक प्रकारसे