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मुमुक्षुः- अपने स्वभावसे भी भिन्नता?
समाधानः- अपने स्वभावसे भिन्नता नहीं, विभावके स्वभावसे। अपना स्वभाव वह तो स्वयं ही है। .. वांचन, विचार, भक्ति, वैराग्य आदि सब होता है, उसके साथ होता है। एक चैतन्यतत्त्वको पहचाने। ध्येय एक-आत्मा कैसे पहचाना जाय? शुभभावमें सब साथमें होता है। अंतरमें शुद्धात्मा कैसे पहचाना जाय? ज्ञायक.. ज्ञायक... ज्ञायकको जाननेका अन्दर पुरुषार्थ।
मुमुक्षुः- एकदम क्यों नहीं शुरू होता है?
समाधानः- उतनी लगनी नहीं है, उतनी रुचि नहीं है, अंतरमेंसे उतना वापस नहीं मुडा है। सब साथमें चाहिये।
मुमुक्षुः- ऐसे तो ऐसा लगता है कि कुछ अच्छा नहीं लगता।
समाधानः- अच्छा नहीं लगता, लेकिन अंतरमें अपनी ओर मुडनेकी उतनी रुचि जागृत होनी चाहिये न। अच्छा नहीं लगे, परन्तु उतना पुरुषार्थ अपनी ओरका होना चाहिये न। उतना पुरुषार्थ होता नहीं है। अच्छा नहीं लगे, वास्तवमें अच्छा नहीं लगता हो तो वह अंतरमें मार्ग किये बिना रहे नहीं।
मुमुक्षुः- अपनी ओर मुडनेका मार्ग प्राप्त हो ही जाता है?
समाधानः- मार्ग प्राप्त हो ही जाता है। वास्तवमें अन्दर लगे तो। खरा पुरुषार्थ अन्दर हो तो। लगनी लगनी चाहिये अंतरमें। क्षण-क्षणमें उसीकी लगनी लगे। और कहीं रुचे नहीं, क्षण-क्षणमें मेरा ज्ञायक.. ज्ञायक.. मुझे ज्ञायक कैसे पहचानमें आये? ज्ञायकदेव। ज्ञायक दिव्यस्वरूप मुझे कैसे पहचानमें आये? उतनी ज्ञायककी महिमा लगनी चाहिये, ज्ञायककी उतनी लगनी अन्दर लगनी चाहिये।
.. अन्दरसे स्वयं विचार करना। बाहरकी महिमा छूटे और अन्दरकी ज्ञायककी महिमा (आये)। उसका स्वभाव पहचानना कि आत्माका स्वभाव कोई अलौकिक है। उसका स्वभाव पहचानना। महिमा कैसे आये? ज्ञायक एक दिव्यमूर्ति है। ज्ञायक मात्र ज्ञान नहीं है, परन्तु ज्ञायक अनन्त गुणोंसे भरपूर दिव्य है। ऐसे महिमा लगनी चाहिये। मात्र एक रुखा ज्ञान जाननेवाला, जाननेवाला ऐसा नहीं है। दिव्यतायुक्त कोई पदार्थ है।
मुमुक्षुः- दिव्यता कैसी होती है? समादानः- कैसी हो, उसका क्या...? दिव्यता आश्चर्यकारक दिव्यता। दिव्यताका अर्थ स्वयं दिव्यस्वरूप है।
मुमुक्षुः- उसका कुछ वर्णन?
समाधानः- उसका वर्णन क्या? उसका अर्थ समझमें आये ऐसा है। दिव्यता अर्थात दिव्य। देवस्वरूप आश्चर्यकारक दिव्यता। कह नहीं सके, उसका अर्थ वह। दिव्यता।