Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 72.

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अमृत वाणी (भाग-३)

ट्रेक-७२ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- आपकी बातसे बहुत हिम्मत आ गयी। नहीं तो अन्दरमें कोई विचार करते हैं तो कुछ समझमें नहीं आता। विकल्पोंमें ... तो भी कुछ नहीं मिलता तो ऐसा लगता है कि आत्माका मिलना मुश्किल है। लेकिन आपकी कृपासे बहुत हिम्मत आ गयी।

समाधानः- आत्माका मिलना मुश्किल नहीं है। आत्मा स्वयं ही है। स्वयं स्वयंको भूल गया है। अनन्त कालसे स्वयं स्वयंको भूल गया। ज्ञायक स्वभाव, ज्ञानस्वभावको ग्रहण कर, ज्ञायकको ग्रहण कर ले तो समीप ही है, दूर नहीं है। परन्तु अंतरमें- भीतरमें अनादिकालके अभ्यासके कारण विकल्प-विकल्पकी ऐसी एकत्वबुद्धि हो रही है कि भिन्न करना मुश्किल हो गया। स्वभाव तो सुलभ है, विभाव दुर्लभ है।

परपदार्थ अनन्त काल गया तो भी अपना नहीं हुआ। स्वभाव तो सरल और सुगम है। स्वयं ही है, कहीं बाहर खोजने नहीं जाना है। अंतरमें देखे तो स्वयं ही, स्व स्वयं ही है। अपना अस्तित्व, ज्ञायकका अस्तित्व मौजूद ही है। अनन्त काल गया तो भी परपदार्थ अपना नहीं हुआ। पर तो पर ही है, स्व तो स्व ही है। आत्माको एक बार ग्रहण करे, प्रथम भूमिका विकट है, परन्तु एक बार आत्माको ग्रहण करे तो फिर मार्ग सुलभ, सुगम हो जाता है। अल्प कालमें दर्शन, ज्ञान, चारित्र पूर्ण प्रगट करके उसकी मुक्ति हो जाती है, केवलज्ञान प्राप्त होता है।

विभाव, परपदार्थ.. अनन्तकाल गया तो भी परपदार्थ अपना नहीं होता। स्वभाव तो सहज सुगम है। एक बार उसको ग्रहण करे तो तुरन्त ही प्रगट होता है। लेकिन प्रथम भूमिका विकट होती है। अनादि कालके अभ्यासके कारण ऐसी एकत्वबुद्धि हो गयी है, उसे तोडकर उसे अंतरमें जाना दुष्कर हो जाता है।

मुमुक्षुः- माताजी! सब द्रव्य तो शुद्ध है, जीवके साथ ही अनादि कालसे अशुद्धता लगी हुयी है, समझमें नहीं आया।

समाधानः- अपनी भूलके कारण। सब शुद्ध है, आत्मा भी शुद्ध है। अपनी भूलसे अशुद्धता हो रही है। सब द्रव्यमें तो ऐसा है कि उसमें भूल (नहीं होती)। चैतन्य है तो भूल-भ्रान्तिमें पडा है, इसलिये उसमें अशुद्धता होती है। स्वयं शुद्ध होनेके बावजूद