Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 442 of 1906

 

ट्रेक- ७२

वह विभाव परिणतिकी ओर जा रहा है, आश्चर्यकी बात है। स्वयं चैतन्य होकर भी, जाननेवाला होने पर भी परपदार्थकी ओर भ्रान्ति करके वहाँ जाता है, आश्चर्यकी बात है। चैतन्यमें भूल हो रही है। (द्रव्य तो) शुद्ध है, पर्यायमें भूल हो रही है। प्रयोजनभूत तत्त्व जाने तो आत्माकी प्राप्ति तो हो सकती है।

मुमुक्षुः- रुचिकी तीव्रता..

समाधानः- रुचिकी तीव्रता। पुरुषार्थ करे तो हो सकता है। नक्की करे कि विभावमें कुछ सुख नहीं है।

मुमुक्षुः- बाहर अच्छा तो दिखता है, वह कैसे जमे अन्दर कि विभावमें नहीं है?

समाधानः- बाहर अच्छा लगता है। भीतरमें अच्छा लगनेके लिये नक्की करे, स्वभावको ग्रहण करके नक्की करे कि स्वभावमें ही अच्छा है। विभावमें अच्छा नहीं है, वह सब तो दुःखरूप-आकुलतारूप है। ऐसा नक्की करना चाहिये, ऐसा दृढ निश्चय करना चाहिये कि यह सब तो आकुलता-आकुलता है, कहीं सुख दिखाई नहीं देता। सब विकल्पकी जालमें अपनी इच्छा अनुसार कोई परपदार्थ परिणमता नहीं। सब विकल्पमें आकुलता-दुःख है। ऐसा यथार्थ नक्की करे। स्वभावको नक्की करे कि यह मेरा स्वभाव है। प्रतीति दृढ करे कि ज्ञायकमें ही सुख है। ज्ञायक स्वभाव ही महिमावंत है। महिमाका भण्डार हो तो ज्ञायक है। बाहरकी महिमा टूट जाय, स्वभावकी महिमा आवे, स्वभावकी जरूरत लगे, विभावसे विरक्ति आये कि विभावमें अच्छा नहीं है। स्वभावकी महिमा लगे। स्वभावको विचार करके ग्रहण करे कि सुख तो इसमें ही है, बाहर कहीं नहीं है। ऐसा विचार करके ज्ञायक स्वभावको ग्रहण करे, विभावसे विरक्ति हो, स्वभावकी महिमा आये तो इस प्रकार रुचिको दृढ करे।

... विचार कर-करके दृढ करता रहे। .. महापुरुष भी सब छोडकर, आत्माको- स्वभावको ग्रहण करके अंतरसे विरक्ति और स्वभावकी महिमा लाकर आत्माकी साधना की है। आत्मा ही सर्वश्रेष्ठ पदार्थ है। और अंतरमें विचार करके नक्की करे कि यह स्वभाव ही महिमावंत है। इसप्रकार रुचिको दृढ करे।

मुमुक्षुः- .. कुछ समझमें नहीं आया .. गुरुदेवश्रीसे मैंने पूछा, महाराजश्री! कल्याणके लिये क्या करना? तो बोले, पर्यायको अन्दर बाल।

समाधानः- पर्याय बाहर जाती है, उसे स्वभावकी ओर झुका। अर्थात द्रव्य पर दृष्टि कर तो पर्याय भीतरमें जाती है। पर्यायको झुका।

मुमुक्षुः- तो पर्याय और द्रव्य कोई जुदी चीज है, माताजी! कि ...

समाधानः- द्रव्य और पर्याय ऐसे जुदी चीज नहीं है। द्रव्यकी पर्याय है, परन्तु