ट्रेक-
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हो सकता है। भावनारूप, परन्तु भिन्न है वह भिन्न ही है। स्वयं शरीर नहीं है। स्वयं
अन्दर जाननेवाला ज्ञायक भिन्न ही है।
अन्दर जाननेवाला ज्ञायक भिन्न ही है।
बारंबार याद करना। उपयोग तो पलट जाता है। जो दुःख होता है वहाँ बार- बार (जाता है)। अनादिके अभ्यासके कारण बारंबार विकल्पमें जुड जाय तो भी उपयोगको बारंबार बदल देना। बारंबार देव-गुरु-शास्त्रको याद करना, बारंबार ज्ञायकको याद करना, बारंबार याद करना। इसमें कंटाला लगे या थक जाना ऐसे नहीं, बारंबार याद करना। अपना स्वभाव ज्ञायक ही है। बारंबार याद करना।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!