१४
समाधानः- ... शास्त्र लिखे, उपदेश दे, स्वाध्याय करे, शास्त्रकी स्वाध्याय करे, शास्त्र लिखे, शास्त्र पढे, ऐसा सब (करते हैं)। तपमें भी ऐसे हैं, शास्त्रमें भी ऐसे हैं, शुद्धात्मामें अनुरक्त हैं, ऐसे हैं मुनिराज। उग्र साधना है न मुनिराजकी। सम्यग्दृष्टिकी साधना गृहस्थाश्रममें होती है, परन्तु वह अमुक प्रकारसे (होती है)। मुनिराजकी साधना उग्र प्रकारसे है। सम्यग्दर्शन हो, गृहस्थाश्रममें भिन्न रहते हैं, परन्तु अमुक प्रकारकी प्रवृत्ति होती है तो उनकी भूमिका अनुसार शास्त्र स्वाध्याय, ज्ञान, ध्यान आदि होता है। पूजा, भक्ति आदि होता है। सम्यग्दर्शनके आठ अंग होते हैं, सम्यग्दृष्टिको वह सब होता है। मुनिराजको सम्यग्दर्शनके अंग तो होते हैं, परन्तु पंच महाव्रतके आचार होते हैं। शास्त्रोंमें लीन हैं।
... गुणरूप मणिओंके समुदाय हैं। गुणरूपी मणि प्रगट हुए हैं। एक-एक गुण मानों मणि कैसे लगाये हों, मणि.. मणि.. मणि.. गुणके रत्न मानों। गुणरत्नोंसे शोभायमान (हैं)। चारों ओरसे गुण-गुणसे भरे हुए। अनन्त गुणसे भरा हुआ आत्मा तो है ही, परन्तु साधनामें जो गुण होते हैं, उन सब गुणरूपी मणिसे मुनिराज शोभित हैं। अनन्त गुण अंतरमें तो प्रगट हो गये हैं, स्वरूपमें लीनता करते हैं, गुणसे शोभायमान हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि। सब प्रकारसे व्यवहारगुण एवं निश्चयगुण, सब गुणरूपी मणिसे मुनि शोभायमान हैं। मानों मणि.. मणि.. मणिका ढेर! रत्नोंका ढेर हो, वैसे गुणरत्नोंसे शोभायमान हैं। मुनिराजको ऐसे गुण प्रगट हुए हैं।
मुमुक्षुः- और सर्व संकल्पोंसे मुक्त हैं।
समाधानः- सब संकल्पोंसे मुक्त हैं। किसी भी प्रकारके संकल्पसे मुक्त हैं। सर्व संकल्पोंसे (अर्थात) गृहस्थाश्रमके संकल्पोंसे, सब प्रकारके विभावके संकल्पोंसे मुक्त हो गये हैं। ऐसे मुनि...
... पर्याय उन्हें प्रगट होती है। ऐसी जिनकी साधना है। उन्हें तो मुक्तिरूपी सुन्दरी प्रगट होती है। .. हो गये, आत्मामें .. हो गये। तपमें लीन हो गये। गुणरूपी मणिसे शोभित। शास्त्रमें .. हो गये। कलशमें तो संस्कृतमें सब शब्द .. आदि आते हैं।
... ऋद्धि, सिद्धि.. परन्तु भगवान जहाँ आये तो कहते हैं, मुझे पहले भगवानकी