पूजा करने दो। अभी मुझे कोई राजाके हिसाबसे नमस्कार मत करना। श्रावकोंको तो यह है कि भगवानकी पूजा, भक्ति, प्रभावना आदि होते हैं। वर्तमानमेंे तो गुरुदेव पर सबको भक्ति बहुत है न, इसलिये सब नाचने लगते हैं। सबको ऐसा होता है कि क्या करें और क्या न करें। इसलिये दानमें भी उतने देते हैं और सब ....
मुमुक्षुः- अपने गुरुदेव ही है, ऐसा सभामें जाहिर किया। बहुत भावना..।
समाधानः- गुरुदेवका प्रताप प्रसर रहा है। गुरुदेव पर सबको वषाकी भक्ति है। वह भक्ति सबको उछल पडती है। भगवान गुरुदेवने बताये, मन्दिर, सौराष्ट्रमें कोई मन्दिर नहीं थे। गुरुदेवके हस्तकमलसे प्रतिष्ठाएँ हुयी। गुरुदेवने भगवानका स्वरूप, मन्दिरका, तत्त्वका स्वरूप सब गुरुदेवने बताया। गुरुदेवकी वाणी बरसोंसे सबने सुनी है। हृदयमें सबको संस्कार (डल गये हैं)। गुरुदेव पर सबको भक्ति उछल पडी है।
मुमुक्षुः- सूर्यकीर्ति भगवान..
समाधानः- हाँ, सूर्यकीर्ति भगवान। सब भगवानको दिखानेवाले, तीर्थंकरका स्वरूप समझानेवाले, तत्त्वका स्वरूप समझानेवाले, चारों ओर उन्होंने वर्तमान कालमें तीर्थंकर जैसा काम किया। और भविष्यके तीर्थंकर भी स्वयं होनेवाले ही हैं। महाभाग्य कि गुरुदेवकी वाणी सुनने मिली, गुरुदेवका सान्निध्य मिला और गुरुदेवको भगवानके स्वरूपमें स्थापना करनेका भाग्य मिला, वह महाभाग्यकी बात है।
मुमुक्षुः- सूर्यकीर्ति भगवानकी बोली इतनी शीघ्रतासे नहीं हुयी होगी। सिर्फ तीन मिनट। पहले पच्चीस हजार बोले, हीराभाई सीधा लाख बोले, फिर दस-पंद्रह, दस- पंद्रह बढते-बढते एक पैंसठ पर पहुँच गया। तीन मिनटमें ही पूरी उछामनी पूरी हो गयी।
समाधानः- आप सबकी बरसोंकी भावना थी।
मुमुक्षुः- चाहे जितनी बोली हो, उसमें पीछे नहीं हठना है। किसी भी प्रकारकी अशांति जैसा कुछ नहीं है।
समाधानः- ऐसा है कि, जिस प्रकारका प्रसंग हो, उस प्रकारकी उनकी वाणी आती है। वे स्वयं विराजते थे, किसीको ऐसा विकल्प आया तो वैसी उनकी वाणीमें समाधान आये। उस प्रकारका वाणीका योग था। विडीयोमें भी ऐसा हो जाता है।
मुमुक्षुः- बोलो! सूर्यकीर्ति भगवानकी जय हो! भगवती मातकी असीम कृपाकी जय हो!
समाधानः- गुरुदेव विराजे हो, तो ही गुरुदेवके भक्त हैं, ऐसा कहनेमें आये। इतने वर्ष वाणी बरसायी। ... इन्द्र ही रचना करे न। भगवानकी भक्ति तो इन्द्र भी करते हैं। देवलोकके देव भी भगवानकी भक्ति करते हैं। शाश्वत रत्नकी प्रतिमाएँ देवलोकमें