Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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स्वरूप नहीं है। इसप्रकार आत्माको नहीं पहचाना। आत्माको पहचाना नहीं। सब पुण्यबन्ध
हुआ, ग्रैवेयक गया, लेकिन भवका अभाव नहीं हुआ। देवलोकमें अनन्त बार गया,
मनुष्यमें अनन्त (बार जन्म लिया), चारों गतिमें अनन्त बार गया।

(सब) प्राप्त हुआ, लेकिन एक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ। अनादि कालसे आत्मा प्राप्त नहीं हुआ। उसकी रुचि नहीं की है, उसकी भावना नहीं की है। कुछ नहीं किया। उसका परिचय नहीं किया है, कुछ नहीं किया। कोई श्रवण करवानेवाले गुरु मिले तो स्वयं समझा नहीं, आदरपूर्वक सुना नहीं। अनन्त कालमें कुछ नहीं किया।

(तप तो) ऐसा किया कि कोई बार पर्वत पर प्रखर धूपमें ध्यान करे, दरिया किनारे सर्दीमें ध्यान करे, चौमासामें वृक्षके नीचे ध्यान करे। ऐसे तो तप किये। उपसर्ग परिषह आये तो क्रोध करे नहीं, शान्ति रखे, सब करे परन्तु आत्मा भिन्न है ऐसी पहचान नहीं की। ऊपर-ऊपरसे आत्माके लिये करता हूँ, (ऐसा मानता है)। अन्दर आत्माका स्वभाव क्या? आत्मा कौन उसे पहचाना नहीं। मैं आत्माके लिये करता हूँ, आत्माके लिये करता हूँ, ऐसा करता रहा। मोक्षके लिये (करता हूँ), परन्तु मोक्ष किसे कहते हैं (यह समझा नहीं)। अन्दरमें रुचि शुभ-पुण्य-ओरकी रुचि रह जाती है। अंतरमें आत्माकी रुचि नहीं की। सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया। (स्वभावका) आश्चर्य नहीं लगा है। आत्माकी महिमा नहीं आयी है।

जो श्रवण करनेवाले गुरु मिले, उनकी वाणीमें गुरु क्या कहते हैं उसमें कोई आश्चर्य नहीं लगा है। आत्माका आश्चर्य नहीं लगा। अपूर्वता लगनी चाहिये। आत्माका स्वरूप कुछ अलग कहते हैं, मुक्तिका मार्ग कुछ अलग कहते हैं, स्वानुभूतिका स्वरूप कुछ अलग कहते हैं, अंतरमें ऐसी अपूर्वता नहीं लगी है। वाणीमें अपूर्वता (नहीं लगी)। अन्दरमें आत्माकी अपूर्वता नहीं लगी। जो कुछ करता है, वह उसी दिशामें खडा है। दिशा नहीं बदलता। शुभभावकी दिशामें उसी दिशामें खडा है। अंतरकी ओर दिशा होनी चाहिये कि आत्मा भिन्न कैसे है, उसका आश्चर्य लगना चाहिये। वह दिशा नहीं बदलता और वही दिशामें खडा है। चक्कर लगाये तो वहीं के वहीं उतनेमें चक्कर लगाता रहता है।

मुमुक्षुः- बाह्य पदाथामें ही उसका आश्चर्य..

समाधानः- बाहर ही आश्चर्य लगा है। अंतरमें आश्चर्य नहीं लगा। अशुभभाव उसे रुचे नहीं इसलिये शुभभावमें आता है। फिर शुभभावमें ही रहता है। शुभभावसे भी भिन्न मेरे आत्माका स्वरूप है, उसे पहचानता नहीं। शुभभाव तो बीचमें आते हैं। आत्माका स्वरूप पहचाननेका प्रयास करे, रुचि करे, सम्यग्दर्शन (प्रगट करे)। बीचमें शुभभाव होते हैं, परन्तु वह हेयबुद्धिसे होते हैं। सम्यग्दर्शन होनेके बाद भी शुभभाव