Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

२४ होते हैं, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आदि सब होता है, परन्तु वह सब उसे हेयबुद्धिसे (होता है)। उसे भेदज्ञानकी धारा वर्तती है।

मुमुक्षुः- ... ऐसा ख्यालमें आता है। जानना अरूपी भावसे और वेदनात्मक भावरूप है, ऐसा भी ख्यालमें आता है। वह स्वयंकी शक्ति है अथवा जानना मुझमेंसे हो रहा है, उसमें किस प्रकारसे (आगे बढना)?

समाधानः- जानना वह स्वयंका अस्तित्व है। जाननेवालेको ग्रहण करना कि जाननेवाला है वही मैं हूँ। जाननेवालेसे कोई भिन्न मैं नहीं हूँ। जाननेवाला पूरा तत्त्व है। जाननेवालेको ग्रहण करे, विभावसे भिन्न पडे।

पूर्ण तत्त्व जाननेवाला (है)। एक गुण है ऐसा नहीं, वर्तमान एक जाननेवाली अवस्था है ऐसे नहीं, अन्यको जाने वह मैं, ऐसा नहीं। में स्वयं जाननेवाला हूँ। ऐसा स्वयं जाणक तत्त्व है, वह जाननेवाला तत्त्वका उसे आश्चर्य लगे, उसकी महिमा आये, उसे ग्रहण करे। उस पर दृष्टि करे, दृष्टिको थँभावे और विभावसे भिन्न पडे। भेदज्ञान करे। विभावकी एकत्वबुद्धि रखकर मैं जाननेवाला हूँ, जाननेवाला हूँ करे तो जाननेवालेको उसने बुद्धिसे जाना है। एकत्वबुद्धि टूटनी चाहिये और ज्ञायकको भिन्न करके भेदज्ञानकी धारा होनी चाहिये, तो ज्ञायकको पहचाना है। एकत्वबुद्धिमें खडा रहकर मैं जाननेवाला हूँ, ऐसा करते हैं। विचारसे नक्की करता है।

मुमुक्षुः- जाननेवाला हूँ, इस भावमें उसे अन्य पदार्थसे सम्बन्ध नहीं है और अन्य पदार्थका खीँचाव भी उसमें नहीं है, ऐसी वह वस्तु है।

समाधानः- ऐसा वह स्वयं जाननेवाला है, उसे भिन्न करके जाने। महिमावंत (है)। जानना यानी उसमें एक गुण नहीं है, अनन्त महिमासे भरा हुआ, अनन्त गुणोंसे भरा हुआ महिमावंत पदार्थ है। जाननेवालेकी उसे महिमा आनी चाहिये। जाननेवालेको विभावसे भिन्न करके जाननेवालेको ग्रहण करना।

मुमुक्षुः- उस प्रकारसे जाननेमें आता है।

समाधानः- स्वयंके साथ सम्बन्ध है, दूसरेके साथ नहीं है। जाननेवालेको स्वयंके द्रव्यके साथ सम्बन्ध है, स्वयंके साथ सम्बन्ध है। दूसरेके साथ सम्बन्ध नहीं है। अन्यसे अत्यंत भिन्न है। परद्रव्यसे अत्यंत भिन्न है। विभावसे भी वह भिन्न है। विभाव स्वभाव उसका नहीं है। उसका स्वभाव ज्ञायक है। जाननेवालेका अस्तित्व भरपूर भरा है। मात्र जानना ऐसा गुण नहीं, अपितु पूर्ण तत्त्व अपना अस्तित्व ग्रहण करना।

मुमुक्षुः- दृष्टिके विषयमें दृष्टि मुख्य रहती है और उसकी महिमा

समाधानः- दृष्टि मुख्य रहती है। ज्ञायक पर दृष्टि करे। ज्ञायक मुख्य रहता है, परन्तु उसकी महिमा दृष्टिमें भी रहती है, ज्ञानमें भी रहती है और चारित्रमें भी रहती