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है। ज्ञान भी, जैसी दृष्टि है वैसा ज्ञान है। ज्ञान दोनोंको जानता है, द्रव्य और पर्यायको।
दृष्टि एक द्रव्य पर होती है और ज्ञान एवं चारित्रमें लीनता होती है। महिमा तो तीनोंमें
होती है। दृष्टि मुख्य रहकर ज्ञान-ज्ञायक मुख्य रहता है। महिमा तीनोंमें रहती है।
मुमुक्षुः- तीनोंकी पूर्णतामें तो परिपूर्णताकी महिमा पूरी होनी चाहिये तीनोंमें। दृष्टि पूर्ण हो जाती है तो पूर्ण महिमाके कारण होती है। वैसे ज्ञान भी परिपूर्ण केवलज्ञानरूप दशा लेवे तो महिमामें परिपूर्ण होना चाहिये।
समाधानः- महिमा आये इसलिये परिपूर्ण हो जाय, ऐसा नहीं है। महिमा तो होती है। दृष्टिका विषय पूर्ण है। अखण्ड द्रव्य पर दृष्टि की है, परन्तु ज्ञान भी उसको जानता है। ज्ञानमें महिमा आवे इसलिये पूर्ण हो जाय, ऐसा नहीं होती। महिमा दूसरी वस्तु है, पुरुषार्थकी मन्दता होनेसे पूर्णता धीरे-धीरे होती है। दृष्टिमें पूर्णता आ गयी, परन्तु चारित्रमें पूर्णता नहीं आती। महिमा आये इसलिये पूर्ण पर्याय हो जाय, ऐसा नहीं होता।
मुमुक्षुः- ज्ञानकी परसन्मुखता रहती है अस्थिरताके कारण, तो कारण तो यही रहा कि ज्ञानको भी अपने द्रव्य स्वभावकी परिपूर्ण महिमाके साथ लीनता न बनी।
समाधानः- लीनता कम रहती है। ज्ञानकी लीनता नहीं, चारित्रकी लीनता कम रहती है। लीनता तो चारित्रमें होती है, ज्ञान तो जानता है। ज्ञान जानता है। ज्ञान तो, मैं द्रव्य ऐसा हूँ, पर्याय ऐसी है, ऐसा सब जानता है। लीनता चारित्रमें होती है। जाने इसलिये लीनता हो जाय, ऐसा नहीं हो सकता। पुरुषार्थकी कमजोरीके कारण लीनता कम रहती है तो भी पुरुषार्थ होता जाता है। उसका पुरुषार्थ किसीको जल्दी अंतर्मुहूर्तमें हो जाता है। किसीको धीरे-धीरे होता है।
भरत चक्रवर्ती गृहस्थाश्रममें कितने वर्ष रहते हैं। बादमें लीन होते हैं। किसीको तुरन्त उसकी भावना उठती है तो चारित्र हो जाता है तो मुनि बन जाता है। तो एकदम पुरुषार्थ करके केवलज्ञान हो जाता है। किसी-किसीको लीनता जल्दी होती है, किसीको धीरे-धीरे होती है। दृष्टि-प्रतीत द्रव्य पर जोरदार हो गयी कि मैं यही हूँ, यह मेरा स्वभाव (है)। आदरने योग्य स्वभाव है। परन्तु पुरुषार्थ कम रहता है इसलिये जल्दीसे नहीं हो सकता है। किसीको जल्दी होता है, किसीको धीरे-धीरे होता है। ... मुनिको अंतर्मुहूर्तमें केवलज्ञान हो गया। किसीको अंतर्मुहूर्तमें हो जाता है। ... दशामें कितने साल रहते हैं। कोई एक-दो भव करके फिर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं।
मुमुक्षुः- लीनतामें अंतर पड जाता है।
समाधानः- लीनतामें अंतर पडता है। ज्ञायककी भेदज्ञानकी धारा बराबर चलती