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मुमुक्षुः- सहज पुरुषार्थ लागु पडता है?
समाधानः- सहज पुरुषार्थ रहता है। द्रव्य स्वयं कृतकृत्य (है)। द्रव्य अपेक्षासे पूर्णता परन्तु अमुक अंश अभी तो पर्यायमें प्रगट हुआ। पुरुषार्थ सहज साथमें रहता है।
... शुद्ध परिणति साथमें हो, द्रव्य पर दृष्टि हो, भेदज्ञानकी धारा चलती हो तो उसे व्यवहार पूजा कहनेमें आता है। नहीं तो व्यवहार कहनेमें आये, उस प्रकारका व्यवहार कहनेमें आये। अकेला व्यवहार वह वास्तविक व्यवहार नहीं है। निश्चयके साथ व्यवहार हो वह व्यवहार है। उसे भावना है, जिज्ञासा है कि मुझे आत्मा कैसे प्रगट हो? द्रव्य पर दृष्टि कैसे प्रगट हो? वीतरागभावकी भावना करे, जिज्ञासा करे। ज्ञायक... और शुुभभाव साथमें आये वह तो श्रावकोंको वह व्यवहार होता है। बाकी सच्चा व्यवहार तो सम्यग्दर्शनपूर्वक होता है।
मुमुक्षुः- ... दृष्टिमें न निश्चयका व्यवहार, न पर्यायका परलक्ष्यी व्यवहार..
समाधानः- निश्चय नहीं है, व्यवहार नहीं है, द्रव्य पर दृष्टि नहीं है। निश्चय नहीं प्रगट हुआ है, व्यवहार प्रगट नहीं हुआ है।
... सम्यग्दर्शन है, उसके साथ अंतरमें स्थिर नहीं हो सकता है, इसलिये शुभभाव साथमें आता है। और शुभभावके साथ बाह्य अष्ट द्रव्य आते हैं। उससे पूजा करे, इसलिये उसे व्यवहारका आरोप आता है। वस्तुको व्यवहारका आरोप वह स्थूल व्यवहार है। अन्दर शुभभावका व्यवहार... और अन्दर शुद्ध परिणतिपूर्वक हो तो कहनेमें आये।
मुमुक्षुः- खरेखर तो अपनी ही पूजा ..
समाधानः- द्रव्य पर दृष्टि है, आत्माकी महिमा है। परन्तु बाहर शुभभावमें वीतरागताकी महिमा आती है, शुभभावमें। वीतराग जिनेन्द्र देव वीतराग हो गये, स्वरूपमें जम गये, स्थिर हो गये। अहो..! वीतरागदशा! जिनेन्द्र देव, जिन्होंने वीतरागी दशा प्रगट की है। जो आत्मामें संपूर्णरूपसे समा गये हैं। उनका जिसे आदर है कि वह दशा आदरने योग्य है। धन्य है वीतरागी दशा! जिनेन्द्र देव! इस तरह उसे भगवानके ऊपर महिमा आती है। इसलिये उसे पूजाकी भावना आती है।
भगवानका किस प्रकार आदर करुँ? इसलिये सम्यग्दृष्टिको गृहस्थाश्रममें आदरका महिमाका भाव आता है, इसलिये पूजा करता है। भगवान पर महिमा आती है। उनकी वस्तुएँ छूट गयी है और सर्वसंगपरित्याग हुआ है, इसलिये भगवानके दर्शन करते हैं। दर्शन करके भी महिमा करते हैं, स्तोत्र रचते हैं, सब करते हैं। और गृहस्थाश्रममें खडा है, सब चीज-वस्तु आदि होती है। त्यागी नहीं हुआ है। इसलिये भगवानको अमुक वस्तुएँ चढाता है। वस्तुका त्याग (करता है)। गृहस्थाश्रममेंसे त्याग करके भगवानको चढाता