Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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है और भगवानकी महिमा करता है। स्वयं अपने शरीरके लिये, कुटुम्बके लिये सब
करता है, भगवान तो सर्वोत्कृष्ट है इसलिये भगवानकी पूजा और महिमा आती है,
इसलिये पूजा करता है। उत्तम वस्तुओंसे पूजा करता है। ज्ञायककी ज्ञायकधारा छूटती
नहीं है। उसमें एकत्वबुद्धि नहीं होती है। साथमें ज्ञायकता खडी रहती है। शुभभाव
आता है। ज्ञायकता भेदज्ञान (चालू है)।

जो शुभभाव आता है उस क्षणमें ज्ञायककी धारा उसकी भिन्न ही है। तो भी उसे ऐसी महिमा आती है। शुभभावमें स्थिति कम पडती है, परन्तु उसे भगवान पर बहुत भावना आती है। इसलिये शुभभावमें मिथ्यादृष्टिको जो रस पडता है, उससे सम्यग्दृष्टिको जो रस पडता है, स्थिति कम पडती है। क्योंकि यदि अंतरमें समा जाये तो तुरन्त (छूट जाता है)। उसे लंबी स्थिति नहीं पडती है। मिथ्यादृष्टिको स्थिति पडती है और रस पडता है। क्योंकि उसे स्वभावकी महिमा है। आत्माका स्वरूप जाना और स्वभावकी महिमा आयी है। स्वानुभूति दशामें और प्रतीतमें जो महिमा आयी है, यह अंश जो प्रगट हुआ है, पूर्णताकी जो महिमा आयी है, वह महिमा स्वयं अन्दर स्थिर नहीं हो सकता है (तो) भगवान पर महिमा आती है। शुभभाव आता है कि भगवानने सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञान दशा प्रगट की, वीतराग दशा प्रगट की, धन्य है वह वीतराग दशा! ऐसे शुभभावमें महिमा आती है, इसलिये भगवानकी भक्ति करता है, स्तुति करता है, पूजा करता है। परन्तु उसी क्षण अपनी ज्ञायककी भेदज्ञानकी धारा उसे भिन्न ही वर्तती है।

पद्मनंदी आचार्यने भगवानके स्तोत्र रचे हैं। हे भगवान! ये बादलके टूकडे क्यों हो गये? कि इन्द्रोंने जो नृत्य किया उसमें उनका हाथ (ऐसो हुआ तो) बादलके टूकडे हो गये। भगवान! मैं हर जगह आपको देखता हूँ। इस प्रकार भगवानकी स्तुति करते हैं। आप ही जगतमें सर्वोत्कृष्ट हो, आप ही आदर करने योग्य हो। इस प्रकार भगवानकी स्तुति (करते हैं)।

आपके दर्शनसे यह होता है, आपके दर्शनसे पाप नष्ट होते हैं, आपके दर्शनसे... अनेक प्रकारकी स्तुति करते हैं। परन्तु अंतरमें ज्ञायककी भेदज्ञानकी धारा भिन्न वर्तती है। वह बाहरमें दिखायी नहीं देती, परन्तु अंतरकी उसकी परिणति भिन्न वर्तती है।

मुमुक्षुः- ... धारा चालू है, इसलिये अन्दरमें उसे ज्ञायककी पकड चालू रहती है। तो उसी प्रकार जिज्ञासुको भी भगवानका बहुमान करते हुए...

समाधानः- भगवान वीतराग हो गये। उस वीतरागताका स्वयंको आदर है, स्वयंको रुचता है। उसकी रुचि अनुसार रहता है। मुझे आत्मा कैसे प्रगट हो? भगवानने जो आत्मा प्रगट किया, वैसे आत्माका मुझे आदर है। वह आत्मा मुझे कैसे प्रगट हो?