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प्रकार स्वयंको विचार आनेका एक महा... स्वयं पुरुषार्थ करे तो। भगवानका स्वरूप
चारों ओरसे विचारे। क्षण-क्षणमें ज्ञायक याद आये। रुचिवानको ऐसा होता है कि भगवान
मेरे हृदयमें रहे। जैसे भगवान हैं, वैसा ही मेरा आत्मा है। उसे गहराईमें ऐसी रुचि
रहती है कि मुझे मेरा आत्मदेव कैसे प्रगट हो? ऐसी रुचि अन्दर साथमें रहनी चाहिये।
ऐसा पुरुषार्थ मैं कब करुँ? इस प्रकार पुरुषार्थ करनेसे प्राप्त होगा। इस प्रकार समझन
साथमें होनी चाहिये। श्रावक गृहस्थाश्रममें हो, उसके बजाय मन्दिरमें जाये तो एक शुभ
परिणाम होनेका कारण होता है। परन्तु जिज्ञासु हो तो विचार करनेका अवकाश है।
जो नहीं समझता है, (तो) रूढिगतरूपसे तो सब चलता ही है।
मुमुक्षुः- शास्त्रमें तो एक ही पहलू आये, इसमें तो मानो पूरा स्वरूप जीवंतरूपसे ख्यालमें आये उस प्रकारसे ग्रहण करनेका कारण बनता है।
समाधानः- हाँ, कारण बनता है। चारों ओरसे विचार करनेका... पुरुषार्थ करे तो विचार कर सके। विचार करनेका कारण बने। भगवान जिनेन्द्र देवकी महिमा आनेसे भी विचार करनेका कारण बनता है। साक्षात गुरुकी वाणी हो उसकी तो क्या बात करनी! ... समझा नहीं, उसमें साक्षात वाणी कारण बनती है। भगवानकी, गुरुकी वाणी साक्षात हो तो अन्दरसे चैतन्यको पलटनेका कारण बनता है। चैतन्यमूर्ति। परन्तु यह जिनेन्द्र प्रतिमाकी भी उतनी ही महिमा शास्त्रमें आती है। निद्धत और निकाचित कर्म, भगवान जिनेन्द्र देवकी प्रतिमासे छूट जाते हैं, ऐसा आता है। परन्तु उस प्रकारकी अपनी परिणति तैयार होनी चाहिये। निमित्त तो ... रूढिगतरूपसे नहीं होता है, समझनपूर्वक हो तो होता है।