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मुमुक्षुः- ... पूज्य भगवती माता! वर्तमान ... जो कोई हम जैसे पापी प्रवचनकार बन जाय और कहते हैं कि यह देशनाका निमित्त बन जाय तो गुरुदेवश्रीके प्रवचनमें तो ऐसा आता था कि जब-जब जिसको आत्माकी अंतर दृष्टि और अनुभव होगा, उस समयमें कोई अंतरदृष्टि गुरु ही निमित्त होता है। शास्त्र, अज्ञानी गुरु दिगंबरमें जन्मा हो, जो द्रव्यलिंगपनेमें भी आता हो, परन्तु सिद्धान्तमें तो अनुभूतिवाला गुरु ही उस अनुभूतिवालेके निमित्त होगा, ऐसा...
समाधानः- ऐसा नहीं बन सकता। जिसको स्वानुभूति नहीं हुयी, उसका वचन दूसरेको देशनालब्धिका कारण नहीं बन सकता। स्वयं व्याख्यान करे, सब करे परन्तु वह तो स्वाध्याय है एक प्रकारका। परन्तु उसका निमित्त तो जिसको प्रत्यक्ष स्वानुभूति हुयी हो, स्वानुभूतिकी दशा, भेदज्ञानकी दशा (प्रगट हुयी हो), उसकी देशनालब्धिका कारण बनता है। देव और गुरु, जिसको अंतरकी दशा प्रगट हुयी है, ऐसे गुरु देशनालब्धिका निमित्त बनते हैं। जिसे अंतर चैतन्य प्रगट हुआ है, उसकी वाणी निमित्त बनती है। वाणी मात्र सुनी हो उतना ही नहीं, स्वयंको अंतरमें कुछ अपूर्वता लगे। सुननेसे सबको देशनालब्धि हो जाय ऐसा नहीं है। जिसकी पात्रता हो उसे होती है।
बहुत बार वाणी तो सुनी है, भगवान मिले हैं, सब हुआ है परन्तु अंतरमें स्वयंकी तैयारीके बिना कुछ कर नहीं सका। गुरु मिले, भगवान मिले मात्र सुननेसे (नहीं होता है)। अंतरकी तैयारी करे.... निमित्त-उपादानका सम्बन्ध होना चाहिये। निमित्त तो प्रबल है। भगवानकी वाणीका निमित्त प्रबल है। गुरुकी वाणी...
गुरुदेव यहाँ पंचमकालमें पधारे। उनकी वाणीका निमित्त प्रबल था। परन्तु जो पात्र हो उसे देशनालब्धि प्रगट होती है। पात्रता स्वयंकी चाहिये। निमित्त और उपादानका सम्बन्ध (तब होता है)।
मुमुक्षुः- उस वक्त उसे अंतरमेंसे किसी भी प्रकारका अन्य भाव उत्पन्न नहीं हुआ, इसलिये जो सुना वह उसे ख्यालमें आ गया हो, बादमें उस भाव परसे स्वयं अपने भावको जागृत कर सकता है?
समाधानः- प्रत्यक्ष वाणी सुनी हो, वह प्रत्यक्ष है। करना क्यों? स्वयं तैयारी