आत्मामें कोई अपूर्व आनन्द और अनुपन स्वानुभूति अन्दर होती है, वह किसने बताया? वह गुरुदेवने ही बताया है। समयसारके रहस्य किसने खोले हैं? गुरुदेवने ही खोले हैं।
मुमुक्षुः- लोग भडके तो शुरूआतमें गुरुदेव एक-दो दिन नहीं ले।
समाधानः- .. स्वयं बिराजते थे। उनकी वाणी... और जो अभी हो रहा है वह गुरुदेवके प्रभावमें ही हो रहा है, ऐसा ही मानना चाहिये। वही आत्मार्थीताकी शोभा है और वही आत्माका प्रयोजन है। दूसरा सब कुछ स्वयं करे वह कुछ नहीं। जो करता है वह स्वयंके लिये करता है। सच्ची श्रद्धा हो, ज्ञाताकी धारा हो, उसके साथ विरक्ति हो, ज्ञायकता प्रगट हो और आस्रव नहीं छूटे ऐसा नहीं बनता। ज्ञायकता प्रगट हुयी उसे कहें कि उसे विज्ञानघन वस्तु ... ज्ञायकता हो उसके साथ अभी अस्थिरता शुभभाव होता है। उसकी भूमिकाके योग्य, भूमिका अनुसार सच्चे देव-गुरु-शास्त्रकी भक्ति, कार्यो, उस अनुसार उसे अमुक प्रकारके शुभभाव साथमें होते ही हैं।
.. आत्माकी बहुत बात आये, शास्त्रमें-समयसार आदिमें। यह मनुष्यजीवन मुश्किलसे मिले, उसमें ये सब योग मिलना महामुश्किल है। गुरुदेवने जो मार्ग बताया वह मार्ग कैसे ग्रहण हो? वह करना है। यह शरीर पदार्थ भिन्न है, उसके द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न है, आत्माके द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न है और अन्दर विभाव होता है वह स्वयंका स्वभाव नहीं है। वह भिन्न आत्मा कैसे जाननेमें आये वही निश्चयसे करना है। समयसार पढ ले, स्वाध्याय कर ले, लेकिन करना तो अंतरमें है। निश्चयसे जब अंतरमें ऊतरे और स्वयंकी परिणति कैसे पलटे तो भवका अभाव होता है। सीखे वह ठीक है कि स्वयंको जानकारी प्राप्त होती है कि मुक्तिका मार्ग क्या है, परन्तु अंतरमें उतारे तो उसमें भवका अभाव होता है। अन्दर आत्माकी प्राप्ति होती है। मनुष्यजीवनमें वही करना है।
आत्माकी रुचि कैसे प्रगट हो? निश्चयसे तो वह करना है। बाकी सब बाहरका है। अंतरमें होवे वह निश्चय है। अनंतकालमें किया है, सब किया, स्वयं अनंत बार मुनि हुआ, सब हुआ लेकिन आत्माको पहचाना नहीं। आत्मा कैसे पहचानमें आये? सत्य तो वह है। देव-गुरु-शास्त्र (के प्रति) शुभभावमें उनकी भक्ति (आती है), लेकिन अंतरमें आत्मा कैसे पहचानमें आये? आत्मा भिन्न पडे तो भवका अभाव होता है। आत्मा जाननेवाला ज्ञायकस्वभाव है। अन्दरसे पहचाने। मात्र बुद्धिसे विचार करे वह अलग है और अंतरमें पहचानमें आये, तो अंतरसे भवका अभाव होता है। बाहरसे नहीं होता। अंतर परिणति पलटे तो होता है।
जगतमें सर्वोत्कृष्ट (है)। जिनप्रतिमा जिन सारखी। जिनेन्द्र भगवानके दर्शन हो और अन्दर आत्माके विचारसे सर्व दुःख खत्म हो जाते हैं। जिनेन्द्र देव सर्वोत्कृष्ट हैं। शुभभावमें एक जिनेन्द्र देव और गुरु, जिनेन्द्र देवके आश्रयसे और अन्दर आत्माका आश्रय लेनेसे