Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

४८ सब दुःख (टल जाते हैं)। अनादिकालका विभाव टल जाता है तो सब दुःख टल जाते हैं। इसलिये आत्माका आश्रय लेना और बाहरसे जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्रका आश्रय, वह सत्य आश्रय है। जिनेन्द्र देव जगतमें सर्वोत्कृष्ट हैं, गुरु जो साधना करे, गुरुदेव इस जगतमें पंचमकालमें सर्वोत्कृष्ट थे। तत्त्वकी बात आये, वह सब सर्वोत्कृष्ट है, उसका आश्रय लेना और अन्दर आत्माका आश्रय लेना।

यह विचार करना, आत्मा ज्ञायक है। उसमें कोई परवस्तु तो उसकी है ही नहीं, ये शरीर भी उसका नहीं है, तो कोई वस्तु कहाँ स्वयंकी होनेवाली है? और हुई भी नहीं है। उससे अत्यंत भिन्न है। उसके द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न, स्वयंके द्रव्य-गुण- पर्याय भिन्न। शरीरके साथ भी जीवको सम्बन्ध नहीं है तो अन्य किसीके साथ कहाँ- से सम्बन्ध होगा? अन्दर विभाव स्वभाव भी स्वयंका नहीं है। वह स्वयंका स्वभाव नहीं है। स्वयं अकेला ज्ञायक है, लेकिन ज्ञायक महिमासे चैतन्यदेव है, उसमें उसे अन्दर रुचि लगे और आनन्द हो ऐसा आत्मा है। वही निश्चयसे करना है। अन्दर उपयोग नहीं आये तो बाहरमें जिनेन्द्र देव-गुरु और शास्त्रका आश्रय, वह जीवको कल्याणकारी और मंगलकारी है और वही सुखका कारण है।

(अनन्त काल) गया उसमें जन्म-मरण करते-करते यह मनुष्यभव मिलता है, उसमें ऐसे गुरुदेव मिले तो वह एक आश्रय लेने जैसा है। वह धर्मका आश्रय वह सत्य आश्रय है। आपने तो बहुत समझा है, आपको बहुत रुचि है, गुरुदेवका बहुत सुना है तो फिर वही करने जैसा है। वह भूलना ही होगा। (दुःख) लगे तो पलट देना, चित्तको (बदल देना)। अन्दर आत्मा पहचानमें नहीं आये और उसमें नहीं मुडे तो बाहरसे जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्रमें चित्त लगाये।

आत्मा सबसे भिन्न ज्ञायक शुद्धात्मा (है)। शुद्धात्मा महिमाका भण्डार है, अनंत गुणोंसे भरपूर है, उसका स्मरण करना, उसका स्वभाव शास्त्रमें (कहे) तत्त्वका विचार करना, वह करना है।

सबको (लगनी) लगायी कि आत्मा अलग है। गुरुदेवसे कोई अपूर्वता सबको लगी। अब तो गुरुदेवने जो कहा वही कहना है। बाकी सबमें गुरुदेव जो अपूर्वता ले आये हैं, पूरा परिवर्तन, कोई अलग ही परिवर्तन (हो गया)। स्थानकवासी, देरावासी, दिगंबरों सबमें कोई अलग ही प्रकारका परिवर्तन ले आये। बहुत किया है। उन्हें किसीके साथ की जरूरत नहीं पडती, वे तो महापुरुष थे।

मुमुक्षुः- प्रभावना बढती जाती है।

समाधानः- गुरुदेवका प्रभाव है। पूरा परिवर्तन करके गये हैं। अन्दर जिन्होंने ग्रहण किया है उसकी प्रभावना होती है। पूरा परिवर्तन गुरुदेव ले आये। सब कोई क्रियामें