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पडे थे, कोई कहीं थे, कोई बाहरसे धर्म मानते थे, बाहरसे शुद्धि-अशुद्धि पडी थी, कोई शास्त्र पढे, सीख ले, पढ ले तो धर्म हो जाये अथवा उपवास या दूसरा कुछ कर ले अथवा (बाह्य) शुद्धि-अशुद्धि आदि अनेक प्रकारमें पडे थे। गुरुदेवने पूरा परिवर्तन कर दिया। भावनाप्रधान। क्रियासे कुछ नहीं है, गुरुदेवने अंतर दृष्टि करवायी।
मुमुक्षुः- प्रथम ही प्रवचन सुने और दूसरे दिनसे दिगम्बर।
समाधानः- सब लोग विचार करने लगे कि ये कुछ अलग कहते हैं। द्रव्यदृष्टिकी प्रधानतापूर्वक अन्दर साथमें सब आता था, चारों पहलूसे कहते थे। .. पूर्वक अन्दर वैराग्य, महिमा, भक्ति आदि सब उनकी वाणीमें आता था।
... द्रव्यदृष्टिकी मुख्यतापूर्वक सब उसे ख्याल होता है, अस्थिरता आदि सबका ख्याल हो तो साधना होती है। ... मुख्य रखकर भेदज्ञानकी धारा, उसमें अल्प अस्थिरताका उसे ख्याल है, तो उसे साधन (होती है)। कछु है ही नहीं, ऐसा मान ले तो द्रव्यदृष्टि ही सम्यक नहीं होती।
मुमुक्षुः- शुष्कता आ जाये। उत्तरः- शुष्कता आ जाये। द्रव्यदृष्टिकी प्रधानतापूर्वक ज्ञानमें सबका ख्याल होता है।
मुमुक्षुः- द्रव्यदृष्टिकी प्रधानतापूर्वक ज्ञानमें सब ख्याल है।
समाधानः- सबका ख्याल है।
मुमुक्षुः- अस्थिरताका भी ख्याल है।
समाधानः- ख्याल है। कमी है, अधूरापन है, सब ख्याल है। अभी करनेका बाकी है, अभी लीनता बाकी है, सबका ख्याल है। द्रव्यदृष्टिसे भले द्रव्य शुद्ध है, ऐसे द्रव्यदृष्टिकी प्रधानता होनेके बावजूद पर्यायमें अशुद्धता है उसका ख्याल है। गुरुदेवकी वाणीमें सब आता था, चारों पहलू।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- अभी उनको राग है, उस प्रकारका प्रशस्त राग है, भक्ति है, आये बिना नहीं रहता। शुभराग है देव-गुरु-शास्त्र(का), जानते हैं। भेदज्ञान है कि यह मेरा स्वरूप नहीं है, राग है। लेकिन भूमिका है इसलिये आता है। जानते हैं, परन्तु साधना अभी बाकी है, इसलिये पुरुषार्थ डोर भी साथमें है। मर्यादा छोडकर बाहर नहीं जाता। एकत्व नहीं होता, एकत्व नहीं होता, वैसी आकूलता नहीं है, फिर भी ख्याल है कि आता है। स्वयं भिन्न रहता है। अस्थिरता है उसका ख्याल है। ख्याल है और पुरुषार्थकी डोर हाथमें है। पुरुषार्थकी डोर छोडते नहीं है। सहज दशा होती है। ज्ञायककी ज्ञाताधारा सहज द्रव्यदृष्टि चालू रहती होनेपर भी साथमें पुरुषार्थकी डोर हाथमें है। मर्यादासे