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सब शास्त्रोंके रहस्य खुल्ले किये हैं। वह सुननेसे शास्त्रोंमें क्या आता है, गुरुदेवने पूरा
मार्ग क्या प्रकाशित किया है, वह विशेष-विशेष जाननेका कारण बनता है। विशेष-
विशेष जाननेका, विशेष ज्ञान होनेका कारण बनता है।
अपने आप स्वाध्याय नहीं कर सकता हो, समझता नहीं हो, उसे टेपमेंसे एकदम समझमें आता है। बाकी सर्वप्रथम जो देशनालब्धि होती है, उसमें तो साक्षात देव, साक्षात गुरु, साक्षात वाणीसे ही होती है।
मुमुक्षुः- प्रत्यक्ष ही चाहिये?
समाधानः- प्रत्यक्ष। अनादि कालसे जिसे प्रथम नहीं हुआ है उसे प्रत्यक्ष निमित्त हो तो होता है। बाकी उसे अमुक रुचि जागृत हो जाये बादमें विशेष जाननेके लिये गुरुदेवकी वाणी टेप रेकोर्डिंग कारण बनती है। कुछ भी शंका उत्पन्न हो तो वह टेपमेंसे शंका-समाधान सब होता है।
देशनालब्धि हुयी है या नहीं, उसका विचार करनेका कोई काम नहीं है। स्वयं अन्दर पुरुषार्थ करे तो हो सके ऐसा है। देशनालब्धि तो प्रगट पकडमें आये ऐसा नहीं है। इसलिये स्वयं पुरुषार्थ करे, रुचि जागृत करे तो उसे देशनालब्धि हुयी है, ऐसा समझ लेना। स्वयं यदि अन्दरसे वर्तमानमें प्रगट करे तो उसमें देशनालब्धि साथमें आ जाती है। स्वयं करे तो होता है। गुरुका निमित्त प्रबल है, परन्तु पुरुषार्थ-उपादान स्वयं तैयार करे तो निमित्तको ग्रहण किया ऐसा कहनेमें आये। परन्तु यदि स्वयं पुरुषार्थ नहीं करता है, तो निमित्त तो प्रबल है, परन्तु स्वयं करता नहीं है।
मुमुक्षुः- .. रह गयी है, बहुत आश्चर्य जैसा लगता है। बहुत आश्चर्य जैसा लगता है। क्योंकि यह एक बडा ...
समाधानः- महाभाग्यकी बात है कि गुरुदेव यहाँ पधारे और यह वाणी रह गयी। गुरुदेवकी वाणी साक्षात सुननेके लिये बरसों तक लोगोंको मिली है। वह भी महाभाग्यकी बात है। गुरुदेव सब मुमुक्षुके बीचमें रहकर बरसों तक वाणी बरसायी है, वह महाभाग्यकी बात है। ऐसी साक्षात वाणी मिलनी मुश्किल है, इस पंचमकालके अन्दर। ऐसा साक्षात गुरुका योग और साक्षात वाणी मिलनी इस पंचमकालमें अत्यंत दुर्लभ है। उसमें वह मिली तो महाभाग्यकी बात है। फिर तैयारी तो स्वयंको करनी है।
(मुनिराज तो) जंगलमें विचरते हैं। गुरुदेव, महाभाग्यकी बात है कि यहाँ सबके बीच रहकर वाणी बरसायी, सबको उनकी ऐसी अपूर्व वाणी मिली, महाभाग्यकी बात है।