४८ हो सकते हैं।
भरत चक्रवर्तीने भूत-वर्तमान-भावि तीर्थंकरोंकी प्रतिमा विराजमान की है। शास्त्रमें आता है। भरत चक्रवर्तीने विराजमान की है। भूत-वर्तमान-भावि तीन कालकी चौबीसीकी प्रतिमा उन्होंने विराजमान की है। इसमें तो सबका भाव था। परन्तु प्रतिमा तो भावि तीर्थंकरकी प्रतिमा विराजमान की है। उसमें कोई नाम तो है नहीं। भावि तीर्थंकरकी प्रतिमा घातकी खण्डकी विराजमान की है। सब लोग विरोध करते हैं तो क्या करे? सबको भावना हुयी तो विराजमान की। सबने विरोध किया तो क्या करे?
मुमुक्षुः- तो विरोध कषायमें जायेगा?
समाधानः- वह तो सबकी बात सब जाने, और क्या करे? विरोध किसमें जायेगा? जिसको आत्माका कल्याण करना है, वह तो ऐसी बात नहीं करते।
मुमुक्षुः- उस पर वजन नहीं देना।
समाधानः- तीर्थंकर भगवान तो सब क्षेत्रमें होते हैं।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! हमको तो इतनी उपसर्ग झेलनी पडती है कि कहीं भी जायें...
समाधानः- .. आदरने योग्य है। जिनकी मुद्रा है, प्रतिष्ठित नहीं हो तो भगवानकी मुद्रा भी आदरणीय है। तो यह तो वीतरागी प्रतिमा है। इसमें कोई अनादर करना अच्छा तो नहीं होता है। भगवानकी मुद्रा प्रतिष्ठित नहीं हुए तो भी भगवानकी मुद्रा है तो उसका अनादर नहीं करना। शास्त्रमें आता है, पानीमें ले गये तो भी अशातना होती है। भगवानकी मुद्रा तो... भगवानकी मुद्रा है, प्रतिमा है। जिनेश्वर मुद्रा है, उसमें...
मुमुक्षुः- दूसरे लोगोंको मतलब जो अपना विरोध करते हैं, उनको कैसे समझाये ऐसी बात?
समाधानः- जिसको आत्माका कल्याण करना है... सब बाहरकी बातमें सब सबकी जाने। सबका झघडा सबके पास रहो। अपने अपना कल्याण करना है। ऐसे लोगोंको पकडकर, जूठा आग्रह करके कोई करे तो करने दो, क्या करे? अपना कल्याण अपनेको करना है। सबको संप्रदायका बन्धन हो गया।
मुमुक्षुः- यह भी एक अलग गूठ बन गया। उसमें भी गूठबाजी हो गयी। ये मूर्तिको माननेवाले हैं...
समाधानः- .. क्या है कोई विचारता नहीं है। ... बात करते हैं। सबको क्रिया रुचती थी तो क्रिया करनेवाले विरोध करते थे कि ये मुनिको नहीं मानते हैं। यह तो कानजीस्वामीको मानते हैं। ये क्रियाको नहीं मानते हैं, ये तो सब बात उडाते हैं। ऐसी बात करते हैं। सत्य बात आवे तब सब विरोध करते ही हैं, होता ही है।
मुमुक्षुः- .. बहुत बाधाएँ आती है। पूर्वमें ऐसे ही..