Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

५२ है।

मुमुक्षुः- बाढ आती है, गुरुदेव फरमाते थे।

समाधानः- हाँ। इतनी बाढ आती है, प्रवाह आता है। बस, आत्मा.. आत्मा.. आत्मा। सोनेका विकल्प भी नहीं, निद्रा भी अल्प हो गयी, सब अल्प हो गया। निद्रा कौन करे? मैं तो जागृत हूँ। निद्रा कहाँ आत्माका स्वभाव है? मैं तो जागृत स्वभावी हूँ। ऐसा हो गया है। निद्रा भी टूट गयी, आहार भी ऐसा हो गया, कहीं विकल्प नहीं रुकता। आत्मामें लीनता हो गयी है। चैतन्यमूर्ति, मैं चैतन्यमूर्ति हूँ, चैतन्यमूर्तिरूप बन गया। अब केवलज्ञान ले इतनी (देर है)। केवलज्ञानकी तलहटीमें आ गये हैं। बस! ऐसी दशा हो गयी कि बारंबार भीतरमें जाते हैं। ऐसी मुनिकी दशा होती है। लीनता हो गयी है। अंतरकी स्वरूपकी वृद्धि होती जाती है।

सम्यग्दृष्टि गृहस्थाश्रममें होते हैं तो बहुत परिग्रह हो तो उसका विकल्प होता है। ... मुनिको सब विकल्प टूट गया। स्वरूपमें ऐसी लीनता हो गयी, ऐसी लीनता हो गयी। द्रव्यलिंगी मुनि सब छोडकर जाता है, वह यथार्थ नहीं है। यहाँ तो स्वरूपकी लीनता हो गयी है। विकल्प भीतरसे टूट गया, स्वरूपकी लीनता हो गयी है। भिन्न हो गये, सबसे भिन्न हो गये। पदार्थ तो भिन्न है। सम्यग्दर्शनमें आंशिक भिन्न हुए थे और मुनिदशामें अत्यंत भिन्न हो गये हैं।

मुमुक्षुः- वस्तुका स्वभाव वैसा ही हो तो स्वयंको कुछ फलवान हो। आत्माका स्वभाव ज्ञान, दर्शन आदि है, फिर भी उसकी पर्यायमें जाननेके लिये इतने पुरुषार्थकी आवश्यकता क्यों?

समाधानः- स्वभाव तो ऐसा है कि स्वरूपकी ओर ढले ऐसा स्वभाव है। परन्तु अनादिका ऐसा एकत्वबुद्धिका अभ्यास हो गया है कि उसमें जानेका पुरुषार्थ (जल्दी चलता नहीं)। प्रथम भूमिका विकट होती है। समझ पीछे सब सरल है। प्रथम तो एकत्वबुद्धि इतनी गाढ हो गयी है कि वह छूटनेमें उसका रस छूटता नहीं। आत्माकी ओर जो जाता है, सम्यग्दर्शन होनेके बाद तो जैसे पानीका प्रवाह या नदीमें बाढ आती है तो बाढ बाढको खीँचती है। शास्त्रमें ऐसा आता है कि आत्माका स्वभाव प्रगट हो तो होवे। बादमें तो दौडकर स्वरूपकी ओर जाती है, परन्तु पहले एकत्वबुद्धि है तो दुर्लभ हो गया है। एकत्वबुद्धि अनादिसे ऐसी गाढ हो गयी है।

अनादि काल हुआ, परन्तु यदि सम्यग्दर्शन होवे तो बादमें इतना काल नहीं लगता। स्वरूपमें जानेके बाद स्वरूपकी परिणति स्वरूपकी ओर ही जाती है। पुरुषार्थ वैसा ही होता है। सहज पुरुषार्थ होता है। पुरुषार्थ करनेमें कठिनता नहीं लगती। बादमें उसको पुरुषार्थ करनेमें कठिनता नहीं लगती। सहज मार्ग देखनेके बाद अपना स्वभाव है तो