ट्रेक-
७८
५३
सहजतासे, सहज पुरुषार्थसे अपनी ओर जाता है। प्रथम भूमिका जानता नहीं है, एकत्वबुद्धि
है, आत्माको पहचानता नहीं है इसलिये कठिन हो गया है। स्वभाव है इसलिये सुगम
है। अंतर्मुहूर्तमें हो जाता है, जिसको होता है उसको। नहीं होवे तो अनंत काल हो
गया। स्वभाव है तो स्वभाव स्वभावकी ओर जाता है। एक बार सम्यग्दर्शन हुआ बादमें
ऐसा नहीं हो जाता, पहले था वैसा। बादमें तो उसे अवश्य मुक्ति होती ही है।
है, आत्माको पहचानता नहीं है इसलिये कठिन हो गया है। स्वभाव है इसलिये सुगम
है। अंतर्मुहूर्तमें हो जाता है, जिसको होता है उसको। नहीं होवे तो अनंत काल हो
गया। स्वभाव है तो स्वभाव स्वभावकी ओर जाता है। एक बार सम्यग्दर्शन हुआ बादमें
ऐसा नहीं हो जाता, पहले था वैसा। बादमें तो उसे अवश्य मुक्ति होती ही है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!