५४
समाधानः- ... हो गया, अब क्या है, ऐसा यदि करे.... कोई नहीं कर देता, स्वयंको करना पडता है। स्वाधीन है। स्वयं ध्यान नहीं रखता और प्रमाद करे तो गिरता है। पुरुषार्थ तो करना पडता है। स्वभावमें भरा है उसमेंसे आता है, कहीं लेना नहीं जाना पडता। स्वभावमें सब पडा है, उसमें पुरुषार्थ करनेसे सहज प्रगट होता है। लेकिन पुरुषार्थके बिना नहीं होता।
नंदीश्वरका पूजाकी पुस्तकमें कितना वर्णन आता है। उसका तो बहुत वर्णन आता है। अपने तो उसका आंशिक किया है। लेकिन उसका दिखाव अच्छा हो गया है। पाँचसौ-पाँचसौ धनुषके बडे-बडे प्रतिमाजी हैं और विशाल मन्दिर हैं। मेरु पर्वत कितना बडा है! एक लाख योजनका मेरु है। उसमें पाँचसौ धनुषके प्रतिमाएँ हैं। वह मन्दिर कितने बडे! चारों ओर वन है। उन वनके अन्दर चार दिशामें चार मन्दिर हैं। चारों दिशामें चार मन्दिर और बीचमें सब वन हैं। पाँचसौ धनुषकी बडी प्रतिमाएँ! कुदरती सब (रचना है)। जगतमें भगवान सर्वोत्कृष्ट हैं तो यह कुदरत किसीके द्वारा बनाये बिना भगवानरूप परिणमित हो गयी है। सब रत्न भगवानरूप परिणमित हो गये हैं।
मुमुक्षुः- हमारे तो साक्षात भगवान आ गये हैं। माताजी! आपके प्रतापसे भगवान ही हैं।
समाधानः- रत्नकी प्रतिमाएँ। भगवानरूप, सब रत्न भगवानरूप परिणमित हो गये हैं। जम्बू द्वीपमें मेरु है। इस जम्बू द्वीपमें एक सुदर्शन मेरु है, दूसरा घातकी खष्डमें दो मेरु है। दो मेरु-पूर्व दिशामें और पश्चिम दिशामें। दोनों मेरु घातकी खण्डमें है। सुनायी देता है न? और पुष्कर द्वीपमें दो मेरु हैं।
मुमुक्षुः- दो मेरु घातकी खण्डमें आमने-सामने हैं।
समाधानः- हाँ, आमने-सामने पूर्व-पश्चिममें। जम्बू द्वीपमें बीचमें है। और पुष्कर द्वीपमें दो है। अंतिम द्वीप है न? अर्ध पुष्कर, उसमें दो मेरु है। इस तरह पाँच मेरु है।
मुमुक्षुः- आपने प्रत्यक्ष देखे हैं?
समाधानः- सब वर्णन आता है। शास्त्रमें सब वर्णन आता है।
मुमुक्षुः- परन्तु प्रत्यक्ष देखते हों ऐसा लगता है। आपके प्रतापसे तो यहीं मण्डलकी