Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक- ७९

रचना हो गयी है, माताजी! कल्पना नहीं हो पाती कि मन्दिर कितने बडे होंगे!

समाधानः- उसका भी नाप आता है। सौ योजन और पचास योजन आदि कुछ आता है। सौ योजन या ऐसा कुछ आता है। मध्यम जिनालय, जघन्य जिनालय ऐसा सब आता है। सब देव तो अष्टाह्निकामें जाते हैं। जो होते हैं, उसके नियत देव होते हैं। जिन्हें साथमें जाना हो वह सब जाते हैं।

जिन प्रतिमा जिन सारखी। सम्यग्दर्शनके कारणमें जिन प्रतिमा भी कही गयी है। एक बार साक्षात भगवानके और गुरुके दर्शन, वाणी सुने, बादमें तो जिनप्रतिमा आदि सम्यग्दर्शनके कितने ही कारण आते हैं। प्रत्यक्ष वाणी एक बार मिलनी चाहिये। प्रत्यक्ष वाणी देशनालब्धिके लिये.... आत्माका स्वरूप दर्शाते हैं। चैतन्य भगवानको दर्शाते हैं।

... सागरोपमके आयुष्य पूरे हो जाते हैं तो इस मनुष्य जीवनका आयुष्य क्या हिसाबमें है? हे माता! हे जनेता! मुजे आज्ञा दे। मैंने तो अनन्त माताएँ की। अब तो मुझे अंतरमें जो अनादि जननी है, उसके पास जाता हूँ। मुझे आज्ञा दे। प्रवचनसारमें भी आता है। आत्माका स्वरूप सत्य है। वही माता और वही पिता, सब अंतरमें है। अरे..! संसारमें क्या है जो मिला नहीं। कुछ नया नहीं है। इस जीवने अनन्त जन्म-मरण किये। ऐसे संसार-दुःखसे हमें कहीं रुचता नहीं। हमें तो दीक्षा लेनी है। ऐसा कहकर चल देते हैं।

राग छोडकर, जंगलमें मुनि होकर चले जाते हैं। सीधी तरह चले जाते हैं। गुरुदेव कहते थे न? कोई उसे ले जाये, उसके बजाय मैं ही वनमें-जंगलमें, स्मशानमें चला जाता हूँ। माता-पिताका राग छोडकर, स्वयंको भव ही नहीं करने पडे, ऐसी साधना करनेके लिये जाते हैं। वही सुखदायक है। बाकी तो जीवने सब किया है, यह कुछ नया नहीं है। यह संसार तो ऐसी है है। जन्म-मरण, जन्म-मरण होते ही रहते हैं। सबने बहुत सुना है।

आत्माकी तैयारी करनेके लिये गुरुदेवका ऐसा सान्निध्य मिला, ऐसा योग मिला और ऐसी वाणी मिली, वह ग्रहण करने जैसा है। अकेले जाना है, अकेला जन्म- मरण करता है, मोक्षमें भी अकेला जानेवाला है। उसमें बीचमें किसीका साथ नहीं होता। पुरुषार्थ करे, मोक्षमें भी अकेला (जाता है)।

... इस भवसागरमेंसे भवका अभाव कैसे हो? आत्मा उससे छूट जाये, वह मार्ग ग्रहण करने जैसा है, गुरुदेवने बताया वह। इस भवसागरमें ऐसे भव तो जीवने कितनी बार किये हैं। सब भूलता आया है। अभी वर्तमानमें हो इसलिये ऐसा लगता है कि ऐसा हुआ। बाकी भूतकालमें भव-भवमें कितने प्रसंग बनते हैं। कहाँ तिर्यंचमें गया, पशुमें गया, मनुष्यमें गया, कितने दुःख सहन करता आया है। इस भवमें आत्माका