Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

५६ कल्याण होनेका योग बना। इस पंचमकालमें ऐसे गुरुदेव मिले, ऐसा मार्ग मिला तो आत्माका (हित कर लेने जैसा है)।

... वाणी छूटी तो सर्व प्रथम बार वाणी छूटी (तो) जय जयकार हो गया। वाणीका धोध बहा। आषाढ कृष्णा एकम कहते हैं और शास्त्रमें सावन कृष्णा एकम कहते हैं। .. पहाड पर राजगृही नगरीमें पाँच कहते हैं न? विपुलाचल पर्वत पर भगवानकी वाणी छूटी। महावीर भगवानकी।

... हुआ, साथ-साथ छठ्ठा-सातवाँ गुणस्थान हो गया। छठ्ठे-सातवेमें निर्विकल्प दशा तो हुयी। अन्य मतको मानते थे, उसमेंसे सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति हुयी, भेदज्ञान हुआ। एक ही द्रव्य मानते थे, उसमेंसे मैं आत्मा भिन्न, यह शरीर भिन्न, विभाव मेरा स्वभाव नहीं है, ज्ञायकको भेदज्ञान करके पहचाना। और अंतरमें निर्विकल्प दशा स्वानुभूति तो हुयी, आगे बढे, चारित्रदशा भी साथमें हुयी। छठ्ठा-सातवाँ गुणस्थान। अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें निर्विकल्प दशामें झुले ऐसी दशा हो गयी। छठ्ठा-सातवाँ गुणस्थान तो हुआ, उसके साथ ज्ञान प्रगट हो गया। मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय आदि सब ज्ञान (प्रगट हुए)। छद्मस्थ अवस्थामें जितनी पराकाष्टा हो, वह सब उन्हें हो गयी। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान।

मुमुक्षुः- ब्राह्मणमेंसे..

समाधानः- पूर्णरूपसे पलट गये। भगवानकी वाणी छूटी। सब तैयारी एकसाथ हो गयी। यहाँ इनकी तैयारी और वहाँ वाणी छूटी। सब साथमें हो गया। वाणी छूटी और अन्दर गये, एकसाथ हो गया। आत्माकी तैयारी। कैसी पात्रता होती है और निमित्त- उपादानका कैसा सम्बन्ध होता है!!

... स्वरूपमें उस परिणतिकी गति छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुले, ज्ञानकी उतनी निर्मलता, चौदह पूर्वकी लब्धि प्रगट होती है। ऋद्धि-सिद्धि सब प्रगट हो गयी।

मुमुक्षुः- गुरुदेवने यहाँ वाणीका धोध बहाया।

समाधानः- गुरुदेवने बहुत वर्ष वाणी बरसायी। सोनगढमें निरंतर ४५-४५ साल तक अत्रूटक धारासे वाणी बरसायी है, वाणीका धोध बरसाया है। चारों ओर विहार करके यहाँ सोनगढमें निरंतर वाणी बरसायी। चारों पहलूसे स्पष्ट कर-करके द्रव्य-गुण- पर्यायका स्वरूप, स्वानुभूतिका, केवलज्ञानका, मुनिपना, निमित्त-उपादान आदि सब एकदम स्पष्ट करके समझाया है। स्वंयको करना बाकी रह जाता है। वही भवका अभाव और वही सुखका कारण है। बाकी बाहर तो कहीं भी सुख नहीं है। सुख चाहिये, आत्माका स्वभाव प्रगट करना हो तो अंतरमें जाकर ही छूटकारा है। प्रथम भूमिका विकट होती है, परन्तु स्वभावको समझे तो सरल है।