Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

००४

प्रश्नः- परिणति का वेदन है?

समाधानः- हाँ, परिणति का वेदन है। उपयोग भले ही बाहर है, परन्तु परिणति कार्य करती है। खुद भिन्न ही रहता है, उपयोग बाहर जाता है तो भी स्वयं ज्ञायक की धारा भिन्न ही (रहती है)। कोई भी विकल्प आये, वहाँ उपयोग बाहर में रुकता है तो भी एकत्वबुद्धि टूट गई है, भेदज्ञान की धारा वर्तती है और ज्ञायक की परिणति भिन्न वर्तती है। उस परिणति का उसे वेदन है। आंशिक शान्ति-समाधि वर्तती है। पहले की भाँति एकमेक आकूलतारूप नहीं हो जाता, भिन्न रहता है। उस परिणति का उसे वेदन है। उसका उपयोग भले ही बाहर है इसलिये खुद को स्वयं का वेदन नहीं है या जान नहीं सकता, उपयोग वहाँ जाये तो ही जाने ऐसा नहीं है, उसकी परिणति वहाँ कार्य करती है।

प्रश्नः- शान्ति का वेदन उसे सहजरूपसे चालू ही है और वह उसे अनुभव में आ रहा है।

समाधानः- सहजपने चालू ही रहता है। निर्विकल्प का आनन्द वह एक अलग चीज है, लेकिन वर्तमान धारा में शान्ति का वेदन उससे वर्तता ही रहता है।

प्रश्नः- माताजी! इन दोनों के बीच में क्या फर्क पडता है? निर्विकल्प के समय जो आह्लाद का अनुभव होता है और परिणति में जो शान्ति का वेदन होता है, इन दोनों के बीच क्या अन्तर है?

समाधानः- विकल्प छूटकर आनन्द आता है वह आनन्द अलग है। विकल्प ओर का उपयोग छूट गया और मात्र आत्मा रह गया। उपयोग आत्मा में जम गया और वह जो आनन्द आता है, विकल्प छूटकर जो आनन्द आता है, आत्मा पर दृष्टि तो थी लेकिन उसमें जो लीन हो गया, वह लीन होकर जो आनन्द आता है वह अलग है। भेदज्ञान की धारा के बीच सविकल्पदशा में वह आनन्द नहीं होता। उसे शान्ति होती है।

प्रश्नः- वह आह्लाद अलग प्रकार का है।

समाधानः- वह आह्लाद अलग प्रकार का है। बीच में जो रहता है वह शान्ति का वेदन रहता है। सविकल्पता। वह शान्ति का जो वेदन है, वैसा शान्ति का वेदन एकत्वबुद्धि में नहीं होता। भ्रान्ति की दशा में वह शान्ति का वेदन नहीं होता। सम्यग्दृष्टि को भेदज्ञान की धारा में जो शान्ति का वेदन है, वैसा वेदन, वह वेदन एकत्वबुद्धि में, भ्रान्ति में नहीं होता। वह वेदन अलग है। लेकिन उससे भी जो निर्विकल्पदशा का आह्लाद है वह आह्लाद अलग है। विकल्प छूटकर जो आता है, आकुलता, जो अस्थिरता थी वह अस्थिरता भी गौण हो गई, अबुद्धिपूर्वक हो गई, इसलिये अस्थिरता