ट्रेक-
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है, एक विकल्प छूटता है, ऐसा होता है। सहजरूपसे हो तो ऐसा नहीं होता। ज्ञायक
पर परिणति, सहज ज्ञायककी परिणति सहज हो तो एक ग्रहण करे और दूसरा छूट
जाये ऐसा नहीं होता। द्रव्यका ग्रहण रहता है, पर्यायमें पुरुषार्थ रहता है, सब होता
है। विकल्पात्मक हो रहा है इसलिये एक करे तो दूसरा छूट जाता है। ऐसा होता
है। उसकी सन्धि यथार्थ विचार करके नक्की करना चाहिये। द्रव्यदृष्टि और पर्यायमें पुरुषार्थ,
इन दोनोंकी सन्धि करने जैसी है। एकको ग्रहण करे और दूसरा छूट जाये तो अकेला
निश्चय हो जाता है और अकेला व्यवहार अनादिका है, तो यदि द्रव्यदृष्टि नहीं हो
तो-तो मोक्षका मार्ग ही प्रगट नहीं होता।
पर परिणति, सहज ज्ञायककी परिणति सहज हो तो एक ग्रहण करे और दूसरा छूट
जाये ऐसा नहीं होता। द्रव्यका ग्रहण रहता है, पर्यायमें पुरुषार्थ रहता है, सब होता
है। विकल्पात्मक हो रहा है इसलिये एक करे तो दूसरा छूट जाता है। ऐसा होता
है। उसकी सन्धि यथार्थ विचार करके नक्की करना चाहिये। द्रव्यदृष्टि और पर्यायमें पुरुषार्थ,
इन दोनोंकी सन्धि करने जैसी है। एकको ग्रहण करे और दूसरा छूट जाये तो अकेला
निश्चय हो जाता है और अकेला व्यवहार अनादिका है, तो यदि द्रव्यदृष्टि नहीं हो
तो-तो मोक्षका मार्ग ही प्रगट नहीं होता।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!