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ऐसे गहरे संस्कार डालने।
... कोई बहुत हुए हैं, कोई कम हुए हैं, ऐसे हुआ है। सब अलग-अलग आते हैं न, दर्शन हो तब सब बीच-बीचमें आ जाते हैं, सब अलग-अलग आते हैं। ऐसा प्रसंग है, महाभाग्य...! यह सब ... प्राप्त हुआ वह महाभाग्यकी बात है। उसमें आत्मा स्वयं तैयार हो, तैयार हो तो हो सके ऐसा है। गुरुदेव मिले और यह सब मिला।
... आत्मा भिन्न, आत्माका स्वभाव भिन्न, अन्दर विकल्प आये उससे अपना स्वभाव भिन्न, सब भिन्न है। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, अंतर आत्माकी महिमा, ज्ञायकका ध्यान रखना, वह सब करना है। बहुत सुना है, उसका अन्दर रटन करना है।
मुमुक्षुः- आपके और गुरुदेवके प्रतापसे समाधान करते हैं, तो भी बहुत दुःख होता है।
समाधानः- बारंबार प्रयास करना।
मुमुक्षुः- अच्छा नहीं लगता है, परन्तु दूसरा कोई चारा नहीं है।
समाधानः- शरीर काम नहीं करे, उसमें क्या हो सकता है? क्या हो सकता है, जाना पडे।
.. ज्ञायक कैसे पहचानमें आये, जीवनमें वही करने जैसा है। गुरुदेवने मार्ग बताया वही करना है। जैन धर्मका रहस्य किसीको जानना हो तो उसमें आ जाता है। अध्यात्मका रहस्य। अन्यमें छोटी गीता आदि आता है। अपनेमें यह छोटा शास्त्र (है)। सब (शास्त्र) साथमें नहीं रख सके तो इतने छोटेमें आ जाता है। बालकोंको काम आवे, बडोंको काम आवे, सबको काम आवे। और सिद्धान्त प्रवेशिका जिसे समझनी हो उसके लिये वह भी है और यह है। ... यह सब शास्त्र तो है, यह छोटेमें सब आ जाता है। विवरण किया है, थोडा-थोडा वह अन्दर (आता है)। छः द्रव्य, नौ तत्त्व उसका थोडा अन्दर (आता है)। यह लोक स्वतःसिद्ध है, आदि सब लिया है। सबको काम आवे ऐसा है। सिद्धान्त प्रवेशिकामें संक्षेपमें कोई समझे नहीं तो फिर कहे, अब क्या करना? अब क्या? सब कंठस्थ हो गया। यह एक स्वाध्याय करने जैसा और कंठस्थ करने जैसा, सब प्रकारसे ऐसा है। समयसारमें सब पढे वह तो अच्छी बात है, लेकिन नहीं पढ सके तो संक्षेपमें आ जाता है।
मुमुक्षुः- मूल गाथाएँ सब आ गयी।
समाधानः- मूल गाथाएँ आ जाये। फिर प्रवचनसारमें द्रव्य-गुण-पर्यायका आ जाये, इसमें छः द्रव्य आदि। नियमसारमें पारिणामिकभाव आदिका संक्षेपमें आ जाता है। कलशमें स्वानुभूति आदि, सबमें तत्त्व आ जाता है। .. क्या आता है, यह जानना चाहे तो