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मुमुक्षुः- शुभभावका अवलम्बन कब तक है?
समाधानः- शुभभाव बीचमें आते हैं। अंतरमें जानेमें द्रव्यका आलम्बन है, परन्तु व्यवहारमें शुभभाव आये बिना नहीं रहते। अशुभभावोंसे बचनेके लिये शुभभाव उसे बीचमें आते हैं। आलम्बन द्रव्यका है, परन्तु बीचमें व्यवहारमें भी देव-गुरु-शास्त्रके निमित्त होते हैं। अनादि कालसे जो समझमें नहीं आया है। उसमें पहली बार समझे तोक देशनालब्धि होती है। कोई देवका या गुरुका उपदेश मिले तो ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। तब उसे अन्दर प्रगट होता है। आलम्बन स्वयंका है, परन्तु शुभभावमें भी व्यवहार शुभभावका व्यवहार बीचमें आये बिना नहीं रहता। व्यवहारमें देव-गुरु-शास्त्रका आलम्बन है। अन्दर आत्माको पहचानना वह प्रयोजन है।
मुमुक्षुः- ... तो वस्तु प्राप्त होगी। भगवान दिखे तो वहाँ दौडकर जायेेंंगे, ऐसे आत्माको समझनेकी प्यास लगे तो ज्ञानीके पास दोडकर जायें। उसे थोडा समझाईये।
समाधानः- उसका अर्थ ऐसा है कि यदि प्यास लगी हो तो वह दौडकर जाता है। लेकिन प्यास नहीं लगी हो तो मात्र ऊपर-ऊपरसे करता है। सच्ची प्यास लगे तो-तो भीतरमें प्रयास किये बिना रहता ही नहीं, तो-तो प्रयास होता ही है, करता ही है, परन्तु प्यास नहीं लगी है। प्यास लगे तो-तो जहाँ मिले वहाँ सुननेको जाये, भीतरमें प्रयास करे, उपदेश सुने और क्या कहते हैं, गुरुदेव एवं भगवान क्या कहते हैं, उसका विचार करे। भीतरमें भेदज्ञान करनेका प्रयास करे। यदि सच्ची लगी हो तो।
मैं ज्ञायक हूँ, मैं ज्ञायक हूँ, यह मेरा स्वभाव नहीं है। ऐसी ज्ञायकको प्रगट करनेकी यदि प्यास लगी हो तो वह किये बिना रहता नहीं। कोई भी तकलीफ आये तो भी उसे दूर करके, उसको गौण करके वह करता है। परन्तु सच्ची प्यास नहीं लगी है। प्यास लगे तो होता ही है। कोई कहता है न कि, कैसे करना? बहुत करते हैं फिर भी होता नहीं। परन्तु बहुत करता ही नहीं है। प्यास लगी हो तो प्रयत्न होता ही है, हुए बिना रहता ही नहीं।
मुमुक्षुः- प्यास लगी है, यह कैसे पता चले?
समाधानः- जिसको प्यास लगी है वह प्रयत्न करता ही है। प्रयत्न नहीं करता