Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 510 of 1906

 

७७
ट्रेक- ८३

है तो समझना कि प्यास नहीं लगी है। प्रयत्न जरूर करता है।

मुमुक्षुः- पीछली बार गर्मीमें आये थे, तब आपने कहा था कि दिन-रात ऐसी लगन लगनी चाहिये कि न खाना तो आये, न पीना तो आये, एक आत्माकी ही लगन लगनी चाहिये। ऐसी लगन लगाते हैं तो बीचमें कोई प्रतिकूलता आ गयी, शरीर अस्वस्थ है, तमाम बातें आ जाती हैं, मतलब लगनमें बाधा डालते हैं, तो उसमें क्या करना चाहिये?

समाधानः- लगनमें बाधा कोई नहीं डालता। जिसको लगन लगी हो उसको खाना नहीं रुचता, पीना नहीं रुचता, घुमना-फिरना कुछ रुचता ही नहीं। सोना नहीं रुचता, कुछ रुचता ही नहीं। सब करता है, लेकिन भीतरमें मुझे आत्मा चाहिये, वह नहीं मिलता है। खाता है, पीता है, सब करता है, परन्तु जहाँ जाता है वहाँ, मुझे आत्मा चाहिये। अंतरमें जोश और खटक ऐसी लगन लगे तो हुए बिना रहता नहीं। उसे चैन नहीं पडता। कोई बाधा डालता है तो भी वह पुरुषार्थ करके भीतरमें बाहरकी बाधाएँ उसमें अवरोध नहीं करती। अंतर पुरुषार्थ करे उसको बाहरका कार्य अवरोध करता ही नहीं। भीतरमें हुए बिना, किये बिना रहता नहीं, करता ही है।

मुमुक्षुः- माताजी! शुभ परिणामोंमें पुण्यका बन्ध तो होता ही है, साथमें कर्मका भी बन्ध होता है?

समाधानः- शुभका बन्ध होता है तो कर्मका बन्ध होता ही है? उपयोग स्वरूपमें लीन हो जाये तो अबुद्धिपूर्वक या बुद्धिपूर्वक नहीं होता है। परन्तु अभी अंतरमें अबुद्धिपूर्वक है तब तक बन्ध होता ही है और शुभउपयोग होवे तो बन्ध तो होता ही है। हेयबुद्धि है, भेदज्ञान है कि मैं भिन्न हूँ, ज्ञायककी परिणति है, परन्तु यदि उपयोग शुभ है तो बन्ध होता है। बन्ध तो होता है। जितनी भेदज्ञानकी धारा है, ज्ञायककी परिणति है, उतना बन्धसे छूट गया है। दर्शनमोहका बन्ध छूट गया और चारित्रमोहका बन्ध होता है। दर्शनमोहकी कोई अल्प प्रकृति हो तो अल्प बन्ध होता है। परन्तु दर्शनमोह छूट गया है और चारित्रमोहका बन्ध होता है। शुद्धउपयोगमें नहीं (होता)।

... शुभउपयोगको पलटना चाहिये। उसमें ज्ञान, दर्शन तो साथमें होते ही हैं। उपयोग बाहर जाये, उसमें जो शुभ परिणाम या अशुभ परिणाम, जो शुभाशुभ परिणाम होते हैं, उसके साथ ज्ञान तो साथमें होता है। इसलिये ज्ञानका उपयोग भी शुभउपयोग मिश्रित है। ज्ञान बाहर जाये तो ज्ञान शुद्धात्मामें लीन हो जाये, ऐसा तो ज्ञान है नहीं। ज्ञान शुभाशुभके साथ रहा है। इसलिये शुभाशुभ उपयोगको पलट दे। तेरा उपयोग स्वरूपमें- आत्मामें आनन्द है, उसमें तेरा उपयोग लगा दे। वास्तवमें तो ज्ञानका उपयोग है, परन्तु उसके साथ शुभाशुभ भाव जुडे हुए हैं।