Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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कहना?

समाधानः- अपेक्षासे अपरिणामी कहनेमें आता है। परिणामी और अपरिणामी दोनों है। परिणाम बिना नहीं रहता। अपरिणामी-एक अपेक्षासे उसमें कोई परिणामका भेद नहीं पडता है। एक द्रव्य, एक अखण्ड द्रव्य... द्रव्यकी दृष्टिसे अपरिणामी कहते हैं। परिणाम निकल नहीं जाता। परिणाम है आत्मामें। परिणाम उसमें नहीं है, ऐसा नहीं है। परिणाम सहित द्रव्य है।

द्रव्य अनादिअनन्त एकरूप द्रव्य है। एकरूप। इसलिये उसे अपरिणामी कहनेमें आता है। द्रव्यमें कोई पलटन नहीं है, द्रव्य एकरूप रहता है। द्रव्यदृष्टिसे उसे अपरिणामी कहनेमें आता है। पर्यायदृष्टिसे परिणामी कहनेमें आता है। परिणाम, अपरिणामी दोनों हैं। परिणाम उसमें है ही नहीं, ऐसा नहीं है। कुछ है ही नहीं, कल्पित है, ऐसा नहीं है। उसमें है, परिणाम है।

... परिणाम होते हैं। गुणका कार्य होता है। अनन्त पर्याय होती हैं। सिद्ध भगवानमें भी परिणाम होते हैं। परन्तु द्रव्य परिणामी, अपरिणामी (कहनेमें आता है)। द्रव्यदृष्टिसे अपरिणामी (कहते हैं)।

.. शुभाशुभ भावमें रुचे नहीं, अन्दर रास्ता मिले नहीं, ऐसा नहीं बनता। अन्दरमें जिसे खरी लगन लगी हो, उसे मार्ग प्राप्त हुए बिना नहीं रहता। उसे ज्ञायक ग्रहण हुए बिना नहीं रहता। अंतरमें शुभाशुभ भावसे यदि उसे सचमुचमें आकुलता लगती हो और कहीं चैन नहीं पडता हो, तो आत्माको ग्रहण किये बिना नहीं रहता। वह मार्ग ढूँढ ही लेता है। मार्ग गुरुदेवने बताया और स्वयंको ग्रहण नहीं हो तो अपने पुरुषार्थकी कमी है। मार्ग तो स्पष्ट करके बताया है। परन्तु स्वयंको अन्दर खरी लगी हो तो ग्रहण करे। ग्रहण नहीं करता है। सच्चा दुःख लगा हो वह ग्रहण किये बिना नहीं रहता। सच्ची भूख नहीं लगी है, इसलिये वह ग्रहण नहीं करता है।

मुमुक्षुः- प्रतिकूलताका ही दुःख लगा?

समाधानः- प्रतिकूलतामें दुःख लगे, परन्तु अन्दर सुख कहाँ है? उसको अन्दरसे सुख खोजनेकी, आत्माको ग्रहण करनेकी अन्दर उतनी लगनी नहीं लगी है। प्रतिकूलताका दुःख ऊपर-ऊपरसे लगता है।

मुमुक्षुः- शुभभावका पुरुषार्थ होता है, वह किस प्रकारका होता है? शुभभावका पुरुषार्थ ज्ञानीको होता है..

समाधानः- अंतरमें पुरुषार्थ तो उसने शुद्धात्माको ग्रहण किया है। शुद्धात्मामें लीनताका पुरुषार्थ है। अंतरका पुरुषार्थ तो (यह चलता है)। परन्तु उपयोग बाहर जाता है, इसलिये अशुभभावसे बचनेके लिये शुभका पुरुषार्थ उसे कहनेमें आता है और शुभका पुरुषार्थ