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भी शुभभावमें होते हैं। हेयबुद्धिसे है। उसे मानते नहीं है कि यह मेरे आत्मामें लाभकर्ता
है। ऐसा नहीं मानते हैं।
मेरे आत्मामें शुद्धि कैसे बढे? मेरे आत्मामें लीनता कैसे हो? इसलिये अशुभसे छूटकर शुभभावमें (आता है)। पुरुषार्थ अंतरमें स्थिर होनेका है, ध्येय अंतरमें स्थिर होनेका है। परन्तु स्थिर नहीं हो सकता है, इसलिये बाहर खडा रहता है। उस क्षण शुभाशुभ कार्य करता हो, शुभके कार्यमें हो, देव-गुरु-शास्त्रके कोई भी कार्यमें हो तो भी उसे उसी क्षण भिन्न ज्ञायककी परिणति होती है। उसी क्षण ज्ञायककी परिणति होती है। उसे याद नहीं करना पडता। भिन्न ही, न्यारा ही रहता है।
मुमुक्षुः- शुभभावमें खडा रहता है, उसीका नाम शुभभावका प्रयत्न है?
समाधानः- बस, उसमें खडा रहता है। प्रयत्न है, अशुभसे बचनेको शुभभावमें खडा रहता है, उसका प्रयत्न है। दूसरा प्रयत्न नहीं है। भिन्न-भिन्न कार्य होते हैं, जिनेन्द्रदेवका, गुरुका, शास्त्रोंके विचार, श्रुतका चिंतवनका, बस, उस प्रकारका उसका प्रयत्न है। उसमें खडा रहता है। अंतरमें ज्ञायककी परिणति तो साथमें ही है। ज्ञायककी परिणति साथ- साथ रखता है और इसमें खडा रहता है।
अशुभमें नहीं जाना है, इसमें खडा रहना है, ऐसा। हेयबुद्धिसे भी खडा इसमें रहना है। या तो अंतर आत्मामें जाना है अथवा शुभभावमें खडा रहना है। अशुभमें तो जाना ही नहीं है। ... दृष्टिसे उसे सर्व प्रकारसे हेय माना है। किसी भी प्रकारसे आदर नहीं है, स्वभावदृष्टिसे। परन्तु प्रयत्नमें अंतरमें स्थिर नहीं हो सकता है, इसलिये बाहर शुभभावमें प्रयत्न होता है।
मुमुक्षुः- माताजी! ऐसा कह सकते हैं कि शुद्धताके मन्द पुरुषार्थमें उसे शुभ परिणाम हो जाते हैं। इसलिये व्यवहारसे ऐसा कहा कि अशुभसे बचनेको शुभमें खडा है। वास्तवमें तो शुद्धताका..
समाधानः- मन्द पुरुषार्थ है, उसके साथ शुभभाव आये बिना नहीं रहते। शुद्धताका तीव्र पुरुषार्थ हो तो उसमें वह गौण होता है। परन्तु शुद्धताका मन्द पुरुषार्थ है, इसलिये उसके साथ शुभभाव जुडे रहते हैं। प्रयत्न शुद्धिका है, परन्तु शुद्धि आगे नहीं बढती है और मन्द रहती है, इसलिये शुभभावमें खडा रहता है। एक ओर अशुभसे बचनेको, एक ओर उसे शुद्धताकी ओरका तीव्र पुरुषार्थ नहीं चलता है, मन्द है, इसलिये शुभमें खडा रहता है। मन्द यानी ज्ञायककी परिणति तो चालू ही है, परन्तु अन्दर जो विशेष लीन होना चाहिये, वह नहीं हो सकता है। ज्ञायककी परिणति उसे दृष्टिकी अपेक्षासे जोरदार है। परन्तु आचरणमें मन्द है, इसलिये शुभभावमें खडा है।